आपका-अख्तर खान

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02 मई 2013

कोई दीवाना कहता है

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मै तुझसे दूर कैसा हू तू मुझसे दूर कैसी है ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है
मोहबत्त एक अहसासों की पावन सी कहानी है कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आसूं है जो तू समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी है
मै जब भी तेज़ चलता हू नज़ारे छूट जाते है कोई जब रूप गढ़ता हू तो सांचे टूट जाते है
मै रोता हू तो आकर लोग कन्धा थपथपाते है हँसता हू तो अक्सर लोग मुझसे रूठ जाते है
समंदर पीर का अन्दर लेकिन रो नहीं सकता ये आसूं प्यार का मोती इसको खो नहीं सकता

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