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02 मई 2013

सैदपुर: गुप्तकालीन स्वर्णयुग का शहर


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गंगा नदी के तट पर बसा सैदपुर भारत की सांस्कृतिक राजधानी काशी (वाराणसी) से 43 किमी0 पूरब में स्थित है। गौरवशाली गुप्तकालीन इतिहास की गवाह यह नगरी अपने धार्मिक पहचान के लिए विख्यात है। फकीरों व सिद्ध ऋषियों की तपोभूमि और महान मुगल प्रशासक सैय्यद शाह की कर्मस्थली के रूप में चिन्हित सैदपुर अपने सामाजिक और सांस्कृतिक एकता के लिए विख्यात है।
सन् 1942 के स्वतन्त्रता आन्दोलन की गवाह यह भूमि अनेक आन्दोलनों का दंश झेला है। रजवाड़ी हवाई अड्डा फूँकने से लेकर कचहरी पर झण्डारोहड की गवाह यह धरती भारत के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है। सैदपुर का प्राचीन नाम सिद्धपुरी या सैय्यदपुर था इसपर लोगों का अपना मत है। स्थानीय निवासी सुरेन्द्र प्रताप यादव ने बताया कि सिद्ध ऋषियों की कर्मस्थली रहने के कारण इसे सिद्धपुरी के नाम से जाना जाता था जिसका परिवर्तित नाम आज सैदपुर है जबकि स्थानीय मुगल प्रशासक सैय्यद शाह के नाम पर इसे सैय्यदपुरी के नाम से जाना जाता है जिसका प्रमाण स्थनीय रेलवे स्टेशन का बोर्ड है जिस पर सैय्यदपुर ही लिखा है।
02धार्मिक सौहार्द के लिए जाना जाने वाला यह शहर अपने गोद में अनेकों ऐतिहासिक विरासत सम्हाले हुए है। माँ गंगा के तट पर स्थित परमहंस आश्रम रंग महल महान ऋषियों की तपोस्थली रहा है। अपने घोर तपस्या से ऋषियों ने इसे सिद्धपुरी का नाम दिया तथा समाज को नया दिशा देने का काम किया है। मुगलकालीन समय में यह स्थल मुगल प्रशासक के रंग महल या आमोद-प्रमोद केन्द्र के रूप में प्रयुक्त होता था। मगर समय के बदलाव से इसका भाग्य भी बदला और ऋषियों की तपोस्थली के रूप में विख्यात हुआ। परमहंस आश्रम के महन्त महर्षि चन्द्रानन्द सरस्वती ने बताया कि कभी-कभी निर्माण के वास्ते खुदायी के दौरान मोटी दीवाले मिलती हैं जिससे कि यह सिद्ध होता है कि पहले यहाँ महल रहा होगा।
03महर्षि चन्द्रानन्द सरस्वती ने एक वाकये का जिक्र करते हुए कहा कि एक रात मैं आश्रम में मुख्य भवन पर सो रहा था तभी मुझे थूकने की जरूरत महसूस हुआ मैं लेटे ही थूक दिया जिसपर अचानक एक दुबले पतले महात्मा जैसे व्यक्ति का दर्षन हुआ तथा उन्होने मुझसे क्या कहा मैं कुछ समझ पाने में असमर्थ था। इससे यह सिद्ध होता है कि रंग महल आश्रम में ऋषियों की आत्मायें आराम करती हैं। परमहंस आश्रम रंगमहल में उत्तरी तरफ स्वामी परमहंस जी का मन्दिर है जहाँ पुर्वी उत्तर प्रदेश समेत बिहार से श्रद्धालु दर्शन-पुजन वास्ते हमेशा आते हैं। आश्रम में प्रत्येक वर्ष सद्गुरू समर्थ स्वामी परमहंस जी महाराज के महानिर्वाण दिवस अष्विन मास कृष्ण पक्ष की दशवीं तिथि को भव्य समारोह का आयोजन होता है, जिसमें हजारों की संख्या में भक्त भाग लेते हैं। रंगमहल के उत्तर दिशा में दादा साहिब की मजार स्थित है लोग इन्हे दाता साहब के नाम से जानते हैं लोगों का मत है कि इनके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता है।
टाउन नेशनल इण्टर कालेज सैदपुर की शिक्षा का आधार स्तम्भ है। शिक्षा के उच्च प्रतिमान को समेटे यह विद्यालय क्षेत्र के लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराता है। इसकी स्थापना स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आत्माराम पांडे ने 1946 मे किया था। टाउन नेशनल इण्टर कालेज के पूरब तरफ ही रंगमहल मन्दिर व परमहंस आश्रम स्थित है। इसके मुख्य द्वार से पष्चिम तरफ बाबा साहिब की मजार स्थित है । स्थानीय नागरिक सुरेन्द्र प्रताप यादव का मानना है कि पुर्व में यह स्थान मुगल बादशाह के निवास के रूप मे प्रयुक्त होता रहा होगा। एक खास बात यह है कि टाउन नेशनल इण्टर कालेज के की्रड़ा मैदान पर ही प्रत्येक वर्ष सुशीला देवी क्रिकेट प्रतियोगिता होता है जिसमें राष्ट्रीय व राज्य स्तर के क्रिकेट खिलाड़ी व फिल्म कलाकार आते है ।
सैदपुर स्थित सब्जी मण्ड़ी से वाराणसी, बिहार व अन्य जगहों के लिये सब्जीयाँ भेजी जाती है। यहाँ सस्ती व अच्छी सब्जियाँ मिलती हैं। हर प्रकार के फल व सब्जियों के प्रसिद्ध सैदपुर सब्जी मण्डी अपने तरफ बरबस ही ग्राहकों को आकर्षित करती है। सैदपुर स्थित गंगा नदी पर बना पीपा का पुल चन्दौली व गाजीपुर जनपद को जोड़ता है। प्रत्येक वर्ष अक्टुबर माह से जून माह तक रहता है जिससे कि दोनों जनपदों के व्यापारीयों समेत आम नागरिकों को जोड़ने का काम करता है। पीपा पुल से व्यापर को काफी लाभ मिलता है इसके सहारे छोटे व्यापरी व किसान आसानी से गंगा नदी को लांघ कर अपनी उगायी सब्जीयों को बेच लेते हैं।
ठीक इसी के बगल से गंगा नदी पर सेतु बनाने का कार्य विगत कई वर्षों से काफी कच्छप गति से चल रहा है। हाल यह है कि सन् 2000 से जारी यह कार्य केवल कुछ अर्धनिर्मित खम्भे ही खड़ा कर पाया है। धनाभाव के चलते काम रूक गया था। इस पुल के बन जाने से दोनों जिलों की दूरीयां सिमट जायेगी। गंगा घाट पर ही बूढ़े महादेव की विशाल मन्दिर है। गंगा घाट से स्नान कर भक्त बाबा के दर्शन-पूजन करते हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि जब विश्वामित्र जी श्रीराम व लक्ष्मण जी के साथ ताड़ूका वध के लिए जा रहे थें तो सैदपुर में ही गंगा घाट पर एक दिन का प्रवास किया था तभी बूढ़े महादेव की स्थापना की थी। इसी लिए लोग इनकी उत्पत्ती पृथ्वी से मानते हैं। यहाँ पर रामनवमी के दिन मेले का आयोजन होता है जिसमें भक्त इनका अभिषेक व पूजन-अर्चन का भव्य कार्यक्रम करते हैं।
04बूढ़े महादेव से मात्र पाँच सौ मीटर की दूरी पर शेख सम्मन बाबा की मजार स्थित है। धार्मिक सौहार्द की नगरी में एक अनुठी मिशाल है शेख सम्मन बाबा की मजार , यहाँ पर रामनवमी के ठीक बाद उर्स का आयोजन किया जाता है। शेख सम्मन बाबा के बारे में स्थानीय बूजुर्ग जमाल अहमद बताते हैं कि ‘‘एक ब्राह्मण दम्पत्ति को संतान नहीं थे वे काफी निराश थें तभी कहीं से एक फकीर का गुजरना उधर से हुआ उन्होने फकीर से अपनी व्यथा सुनायी। तब फकीर ने उस ब्राह्मण दम्पत्ति को आर्षीवाद दिया और कहा कि जा तुम्हे आठ संतान होंगे मगर मुझे तुम्हारा आठवां संतान चाहिए। ऐसा ही हुआ और समय बीतता गया तब एक दिन अचानक उस फकीर का गुजरना उधर से हुआ और फकीर ने वादा के मुताबिक ब्राह्मण दम्पत्ति से पुत्र माँगा मगर उन्होने लड़के को छिपा दिया जिसपर फकीर ने आवाज लगाया कि चल रे सम्मना और बालक फकीर के पीछे चल पड़ा। सम्मन के माने आठवां होता है। आगे जाकर बालक बहुत बड़ा फकीर बना।’’ सम्मन बाबा के बारे प्रचलित है कि एक बार कोई राजा कोढ़ की बीमारी से पीड़ीत था हर जगह से थक कर काशी में देह त्यागने की इच्छा रख कर नाव से जा रहा था कि रात के समय नाविक को आग की जरूरत हुई और नाविक ने नाव नदी के किनारे लगाया तो देखा कि एक फकीर अपनी साधना में लिप्त है आग जल रहा है। नाविक फकीर के तेज से प्रभवित हो कर राजा से उससे मिलने को कहा राजा ने न चाहते हुए भी नाविक के बात पर फकीर के सामने जा कर अपनी व्यथा कहने लगा तब उन्होने राजा को पास पड़ी राख उठा कर दिया और कहा कि जा इसे लगाना। राजा को पहले विष्वास न हुआ मगर उसने बाबा के कहे के अनुसार किया और कोढ़ मुक्त हो गया। सम्मन बाबा के बार में अनेक किस्से प्रचलित है।
06सैदपुर तहसील के पास ही माँ काली की मन्दिर है जहाँ हर समय लोगों की भीड़ दर्शन-पूजन के लिए जमा रहती है। लोग इनको जीवित देवी के रूप में पूजते हैं। नवरात्र के दिनो में देवी पूजन के समय भक्तों का रेला लगा रहता है। स्थानीय नागरिक सुरेन्द्र प्रताप यादव ने बताया कि प्रज्ञा पुरूश श्री आनन्द प्रभु जी जो कि अभी जीवित हैं गाय घाट पर तपस्या करते थें तथा रोजाना माँ काली की पूजा किया करते थें एक बार आपको माता ने साक्षात दर्शन दिया था। सैदपुर स्थित वन बिहार लोगों के लिए शान्ति स्थल का काम करता है। यह पार्क बच्चों के लिए मनोरंजन का केन्द्र है। इसमें नाना प्रकार के वृक्ष हैं तथा शान्त स्थल पर्यावरण को सिंचित करता शहर के लिए शुद्ध हवा उपलब्ध कराता है।
05सैदपुर से 6 किमी0 पूर्वोत्तर की दिशा में स्थित भीतरी गाँव गुप्तकालीन इतिहास के स्वर्णयुग का गवाह है। यहाँ गाजी बाबा की मजार स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इन्ही के नाम पर गाजीपुर जनपद का नाम पड़ा है। भीतरी में ही बुद्ध शताब्दी लाट स्थित है। भीतरी में ही गुप्त सम्राट स्कन्दगुप्त ने मध्य एशिया के हुडों को हराने के बाद विजय स्तम्भ व विजय लाट का निर्माण करवाया था। खुरदरी लाल पत्थर पर बना यह स्तम्भ 28 फीट उँचा तथा जमीन से उपर 10 फिट तक का भाग वर्गाकार तथा शेष भाग वृत्ताकार है। इसका उपरी हिस्सा घण्टानुमा है। इसपर विकसित कमल की अधोमुखी पंखुडि़यां अंकित हैं। इस वृत्ताकार स्तम्भ का व्यास 2 फुट 3 इंच है। इस स्तम्भ के उपर एक गोल चैकी पर एक सिंह की आकृति बनी थी जिसका अब कोई चिन्ह शेष नहीं है। स्तम्भ के नीचे अंकित शिलालेख अब समाप्त प्राय हो चुका है। गाजीपुर गजेटियर के अनुसार यह प्रस्तर स्तम्भ जो कभी एक किले के अन्दर स्थित था वर्तमान में किले के भगनावशेष एवं भूगर्भ स्थित एक विशाल कक्ष को साकार करती ईंटों की खण्डित प्राचीर के पास खुले आकाष में खण्डित रूप में विद्यमान है। इस स्तम्भ के बगल में घण्टानुमा एक कक्ष स्थित है जो गुप्तकालीन स्वर्णयुग की याद दिलाती है। स्तम्भ के पास ही खुदायी में विशाल कक्ष मिला है जिसका जीर्णोद्धार भारत सरकार के सौजन्य से किया जा रहा है। ऐसी अनेकों ऐतिहासिक विरासत सम्हाले सैदपुर भारतीय इतिहास में अपना उच्च स्थान रखता है। सामाजिक सौहार्द की यह नगरी सामाजिक ताना बाना को एक सुत्र में पिरोने का काम करती है।

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