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18 अप्रैल 2013

इस दरवाजे के पीछे है राम के भाई लक्ष्मण का बसाया हुआ शहर, देखें तस्वीरें!


इस दरवाजे के पीछे है राम के भाई लक्ष्मण का बसाया हुआ शहर, देखें तस्वीरें!
रांची। प्राचीन 'लक्ष्मणावती' का ही मध्ययुगीन नाम था गौड़। त्रेतायुग में भगवान राम के भ्राता लक्ष्मण ने इस स्थान की खोज की थी। उन्हीं के नाम पर इस सुंदर नगर का नामकरण हुआ था लक्ष्मणावती। फिर मुस्लिम अधिपत्य के बाद मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाए गए और नगर का नाम भी बिगड़ कर हो गया लखनौती। समय बदलता गया और सेनवंशी राजा शशांक के काल में प्रचलित नाम 'गौड़' अब फिर प्रचलन में है।

लक्ष्मणावती, गौड़, लखनौती और फिर गौड़। शासन और सत्ता, विध्वंस व निर्माण की रोमांचक गाथा इस प्राचीन नगरी को खास बनाती है। कहा जाता है कि इस प्रदेश से प्रचुर मात्रा में गुड़ का निर्यात होने के कारण ही इसे 'गौड़' कहा जाता था। बाणभट्ट के 'हर्षचरित' में गौड़ के नरेश शशांक का उल्लेख मिलता है। आज इस मध्ययुगीन सुन्दर नगर के मात्र खंडहर ही शेष हैं।
 मुग़ल शासकों में हुमायूं ने बंगाल की राजधानी गौड़ पर कुछ वर्षों के लिए अधिकार कर लिया था, परंतु अफग़़ानों ने तुरंत ही उसे वहां से बाहर निकाल दिया। सन 1576 ई. में दो वर्ष के संघर्षपूर्ण घटना-चक्र के पश्चात बंगाल मुग़ल साम्राज्य का एक सूबा बना दिया गया।
पश्चिम बंगाल प्रांत की राजधानी कोलकाता से कुछ ही दूरी पर स्थित लखनौती में 9वीं-10वीं शती ई. में पाल राजाओं का आधिपत्य था तथा 12वीं शती तक सेन नरेशों का। इस काल में यहां अनेक हिन्दू मंदिर बने, जिन्हें गौड़ के परवर्ती मुस्लिम बादशाहों ने नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। गौड़ की मुस्लिम कालीन इमारतों के बहुत से अवशेष अब भी यहां हैं। इन मुस्लिम इमारतों में अधिकतर का निर्माण प्राचीन मंदिरों की सामग्री से ही किया गया था।
मुस्लिमों के बंगाल पर आधिपत्य होने के बाद इस सूबे की राजधानी कभी गौड़ और कभी पांडुआ में रही। पांडुआ गौड़ से 20 मील (लगभग 32 कि.मी.) दूर है। आज इस मध्ययुगीन भव्य नगर के केवल खंडहर ही शेष हैं। इनमें अनेक हिन्दू मंदिरों तथा मूर्तियों के अवशेष हैं, जिनका मसजिदों के निर्माण में प्रयोग किया था। 1575 ई. में बादशाह अकबर के सूबेदार ने गौड़ के सौंदर्य से आकृष्ट होकर राजधानी पांडुआ से हटाकर गौड़ में बनाई।

अपनी सम्पन्नता के थोड़े ही दिनों बाद गौड़ में महामारी का भी प्रकोप हुआ, जिससे गौड़ की जनसंख्या को भारी क्षति पहुंची। बहुत से निवासी गौड़ छोड़कर भाग गए। पांडुआ में भी महामारी का प्रकोप फैला और बंगाल के ये दोनों प्रमुख नगर जहां श्मशान की तरह दिखाई पडऩे लगे।  उनकी सड़कों पर अब घास उग आई और दिन दहाड़े हिंसक पशु घूमने लगे। पांडुआ से गौड़ जाने वाली सड़क पर अब घने जंगल बन गए थे।

उसके बाद लगभग 300 वर्षों तक बंगाल की शानदार नगरी गौड़ खंडहरों के रूप में घने जंगलों के बीच छिपी रही। अब कुछ ही वर्ष पहले वहां के प्राचीन वैभव को खुदाई द्वारा प्रकाश में लाने का प्रयत्न किया गया है।
एक अन्य प्रसंगानुसार गौड़ बंगाल का एक प्राचीन सामान्य नाम था। 'गौड़' या 'गौड़पुर' का उल्लेख पाणिनि ने भी में किया है। कहा जाता है कि 'पुंड्र' या 'पौंड्र' देश से गुड़ का प्रचुर मात्रा में निर्यात इस प्रदेश द्वारा होने के कारण ही इसे गौड़ कहा जाता था। गौड़पुर को गौड़भृत्यपुर भी कहा गया है।

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