आपका-अख्तर खान

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12 अप्रैल 2013

सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।

सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।
अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।।
न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है,
जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,
सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।....!!!

1 टिप्पणी:

  1. य़े क्या बात हुई अख्तर भाई...!
    गीत की पंक्तियों के साथ मेरा नाम तो देना ही चाहिए था।
    अन्यथा यह तो सरासर चोरी ही कही जायेगी।
    कृपया इस गीत के साथ मेरे नाम का उल्लेख कीजिए अन्यथा यह पोस्ट हटा दीजिए।
    ृृ
    http://uchcharan.blogspot.in/2009/02/0_5108.html
    --
    शनिवार, 14 फरवरी 2009

    सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं। (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
    सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।
    अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।।

    न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है,
    जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,
    सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।
    सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

    घूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना,
    भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना,
    ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं।
    सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

    वो सास से झगड़ती, ससुरे को डाँटती है,
    घर की बहू किसी का, सुख-दुख न बाटँती है,
    दशरथ, जनक से ज्यादा बेकार हो गये हैं।
    सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

    जीवन के हाँसिये पर, घुट-घुट के जी रहे हैं,
    माँ-बाप सहमे-सहमे, गम अपना पी रहे हैं,
    कल तक जो पालते थे, अब भार हो गये हैं।
    सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

    जवाब देंहटाएं

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