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13 अप्रैल 2013

इस मासूम फूल सी बच्ची रूना के दर्द से तड़प रहा है पूरा परिवार...



फूल ऐसे भी हैं, जो खिले ही नहीं जिनको खिलने से पहले खिजा खा गई। वाकई इस गीत की पंक्तियां इस नन्हीं मासूम बच्ची की पीड़ादायक जिंदगी को बयां करती है, जो पीडि़त है ऐसी दुर्लभ बीमारी से जिसके बारे में आजतक अपने आसापास शायद ही किसी ने देखा, सुना या जाना हो। त्रिपुरा के जिरानिया गांव के एक परिवार में है यह 18 माह की बच्ची जिसे जन्म से ही ऐसी बीमारी ने घेर लिया है कि अब वह अपने मस्तिष्क का बोझ उठाने के काबिल नहीं है, बल्कि यह मासूम जिसकी किलकारियां पूरे परिवार को खुशी दे सकती थीं वहीं उसका दुख परिवार के लिए बोझ बनता जा रहा है। उसका दर्द अब पूरे परिवार का दर्द बन गया है।
 
हाइड्रोसेफलस नाम है इस बीमारी का
हाइड्रोसेफलस नामक यह बीमारी खोपड़ी के भीतर सेरेब्रोस्पाइनल तरल बनने के कारण होती है। इससे मस्तिष्क में दबाव बढ़ जाता है और ब्रेन डेमेज का खतरा भी हो सकता है।  इस तरह की गंभीर बीमारी से पीडि़त है यह रूना बेगम नाम की बच्ची और ऊपर से मां बाप की गरीबी, जो दिहाड़ी मजदूरी करके अपने घर का पालन-पोलन ब-मुश्किल कर पाते हैं ऐसे में इस बच्ची की बीमारी का खर्च उठाने की ताकत इनमें नहीं है। 
 
इस बीमारी का इलाज 
इस जटिल बीमारी के उपचार के लिए पीडि़त के मस्तिष्क में एक ट्यूब डाली जाती है, जिससे कि सेरेब्रोस्पाइन की बढ़ी हुई मात्रा को शरीर के अन्य हिस्सों में पहुंचाया जाता है और शरीर के अन्य हिस्से इसे एब्जॉर्ब कर लें, तो मस्तिष्क सामान्य हो जाता है। शंट नामक  इस ट्यूब में अंदर की तरफ एक बॉल्व भी होता है, जो तरल के प्रवाह को नियंत्रित करता है और तरल अधिक तेजी से मस्तिष्क से न निकले इस पर भी कंट्रोल करता है। इस ऑपरेशन में बताया जा रहा है 30 मिनट का ही वक्त लगेगा और 70-80 हजार रुपए या इससे थोड़ा और अधिक का खर्च ऑपरेशन में हो सकता है। लेकिन हमें सामान्य लगने वाली यह रकम इस परिवार के लिए बहुत बड़ी है।
 
ईट भट्टे में काम करता है पिता
रुना के पिता अब्दुल रहमान एक ईंट भट्टे में काम करता है। पिता के लिए गंभीर चुनौती यह है कि यदि उसने समय रहते इस बच्ची का ऑपरेशन नहीं करवाया, तो यह स्थायी रूप से विकलांग हो सकती है। लेकिन पैसे की तंगी के चलते सिर्फ दुआओं के भरोसे यह परिवार इस बच्ची के स्वस्थ होने की कामना कर इसकी सेवा में लगा है।
 
मृत्यु भी हो सकती है इस बच्ची की
इस जटिल बीमारी से पीडि़त लोगों की मदद के लिए संचालित संस्था शाइन की हेल्थ डेवलपमेंट मैनेजर गिल  याज का कहना है कि यदि वक्त रहते इस बच्ची का इलाज न किया जा और यदि यही प्रक्रिया तेजी से जारी रहे तो अधिकतर मामलों में पीडि़त शिशु की मौत भी हो सकती है। रुना के मामले में हो यह रहा है कि उसकी खोपड़ी बढऩे के साथ ही उसकी तरल ग्रहरण करने की क्षमता भी बढ़ रही है, जो उसके कष्ट को और ज्यादा बढ़ा रही है।

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