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13 अप्रैल 2013

संस्कारों की मूर्ति, परोपकारों की पहचान है नारी,

संस्कारों की मूर्ति, परोपकारों की पहचान है नारी,
जिंदगी की कड़वाहट में, खुशियों की दुकान है नारी।
जगत की चेतना, राष्ट्र का सम्मान है नारी,
फिर क्यों कदम-कदम पर होती कुर्बान है नारी।

आंचल में समेटे लाज दो परिवारों की,
राहों में कांटे कई, फिर भी बागबान है नारी।
पग-पग न्यौछावर करती अपने अरमान है नारी,
फिर क्यों कदम-कदम पर होती कुर्बान है नारी।

हंसे तो खिल जाए फिज़ा, ऐसी मुस्कान है नारी,
कहने को सब हैं साथ, फिर भी बियाबान है नारी।
परिवार का पोषण, घर का अभिमान है नारी,
दिलों में पड़े ठंडक, ऐसी मीठी जुबान है नारी,
फिर क्यों कदम-कदम पर होती कुर्बान है नारी।

पुरुष अगर कल, तो नारी आज है,
नारी से ही जुड़े देश और समाज है।
नारी सेवा है, तपस्या है और त्याग है,
नारी से ही जीवन में फैला राग है।
क्यों सहती फिर घुट-घुट के अपमान है नारी,
क्यों कदम-कदम पर हो जाती कुर्बान है नारी।

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