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13 अप्रैल 2013

"मैं कहीं हूँ तो सही "

"मैं कहीं हूँ तो सही "

इंसानी चीख में -
प्रतिदान और भीख में
शिक्षक की सीख में
राकेट की चीख में
बैलगाड़ी की लीक में
कहीं मैं हूँ तो सही

जलसे में ताली सा
ससुराल में साली सा
गुस्से में गाली सा
उपवन में माली सा
कहीं मैं हूँ तो सही .

तेरी सुरताल में
गेहूं की बाल में
गेंडे की खाल में
बाल और बबाल में
हाल बेहाल में
कहीं मैं हूँ तो सही .

फ़िक्र और मस्ती में
आलमे पस्ती में
आदम की हस्ती में
सागर और कश्ती में
इंसानी बस्ती में
कहीं मैं हूँ तो सही .

पोथी और पुराणों में
नदियों के मुहानों में
मौसम सुहानो में -
गीत और गानों में
मिलन के बहानो में
मजदूर किसानो में
कहीं मैं हूँ तो सही ...........

(लिस्ट अभी और भी है पर ...
कविता कुछ ज्यादा ही लम्बी हो गयी )

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