आपका-अख्तर खान

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13 अप्रैल 2013

ये नदी -सतत बहती हुई -


ये नदी -सतत बहती हुई -
मेरे आने वाले कल को,
मेरे आज से मिलाती है .
शांत रहती है - अंतर में उमड़ते
तूफानों को बेतरह छुपाती है.

मैं चुप नहीं रह सकता- तुम
कुच्छ भी कहो -चले जाओ
मेरा साथ छोड़ या -
फिर साथ रहो .

यहाँ मैं हूँ - बस
या ये नदी-
जो बहूत कुछ कहती है -
रुक जाना -जीवन नहीं है
इसी लिए शायद -और उद्दाम वेग से
बहती है .

मेरी कविता मेरे एकांत का नहीं-
मेरे पल भर के मौन का प्रतिफल है
मैं शांत हूँ - पर
कविता में मेरे हलचल है .

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