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19 अप्रैल 2013

वो एक पगली

वो एक पगली

वो दिन भर बाते करती थी ...
कुछ चुपके - चुपके कहती थी |
मेरी सांसों में अक्सर ...
उसके होने की खुशबु मिलती थी |
हर आने वाली आहट ...
मुझे बेवक्त जगा कर जाती थी ...
वो दूर बहुत दूर रहकर भी
अहसास जगा फिर जाती थी |
दिन रात वो ख्वाब सजाती थी ...
मुझको कहने से घबराती थी |
वो जान से मुझको प्यारी थी ...
पर मुझसे वो कतराती थी |
न वक़्त कभी ऐसा आया ...
मैं उससे न फिर मिल पाया |
वो साया बनकर अब मेरे साथ...
दिन - रात सफर में रहती थी |
आँखे अब जब नम होती है ...
उसकी यादें संग होती है |
वो पगली मेरे ख्वाबों की ...
अक्सर शहजादी होती थी |

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