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13 जनवरी 2013

सूर्य के उत्तरायण होने पर ही त्यागे थे भीष्ण ने प्राण, जानिए क्यों



14 जनवरी, रविवार को मकर संक्रांति का पर्व है। हमारे देश में मकर संक्रांति का पर्व कई नामों से मनाया जाता है। गुजरात में इसे उत्तरायण के नाम से मनाते हैं। उत्तरायण को हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र समय माना गया है। महाभारत में भी कई बार उत्तरायण शब्द का उल्लेख आया है।
सूर्य के उत्तरायण होने का महत्व इसी कथा से स्पष्ट है कि बाणों की शैया पर पड़े भीष्म पितामह अपनी मृत्यु को उस समय तक टालते रहे, जब तक कि सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण नहीं हो गया। सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ही उन्होंने अपने प्राण त्यागे। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनर्जन्म लेना पड़ता है।

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