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11 जनवरी 2013

भारत का ये विध्वंसक युद्ध जिसकी आग में हमेशा-हमेशा के लिए जल गया एक वंश



हरियाणा. अपने आरंभ के समय में भारत की सीमाएं कांधार तक फैली हुई थीं। इसका प्रमाण महाभारत में स्पष्ट रूप से मिलता है। भारत में पौराणिक काल से ही बाहुबली राजाओं और सम्राटों के मध्य अपने राज्य के प्रसार के लिए युद्ध होते रहे हैं।
 
कई बार ये अपनी भीषणता और बर्बरता की सीमाओं को भी पार कर देते थे। वर्तमान में हरियाणा राज्य के कुरूक्षेत्र में हुए महाभारत के युद्ध के बारे में सभी जानते हैं। ये युद्ध इतना विध्वंसक था इसके पश्चात कई वर्षों तक धरती वीर क्षत्रिय़ों से विहीन रही थी।
 
इसी युद्ध के फलस्वरूप भारत का एक वंश हमेशा-हमेशा के लिए विलुप्त हो गया था। आज हम आपको इसी वंश के बारे में बताने जा रहे हैं जो इस भीषण युद्ध की भेंट चढ़ गय़ा था।
 यह जिला बासमती चावल के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त अनेक पुराणों, स्मृतियों और महर्षि वेद व्यास रचित महाभारत में इसका विस्तृत वर्णन किया गया है। विशेष तथ्य यह है कि कुरुक्षेत्र की पौराणिक सीमा 48 कोस की मानी गई है जिसमें कुरुक्षेत्र के अतिरिक्त कैथल, करनाल, पानीपत और जिंद का क्षेत्र सम्मिलित है।
कुरुक्षेत्र युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया था। महाभारत के अनुसार इस युद्ध में भारत के लगभग सभी जनपदों ने भाग लिया था। महाभारत व अन्य वैदिक साहित्यों के अनुसार यह प्राचीन भारत में वैदिक काल के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था।

इस युद्ध में लाखों क्षत्रिय योद्धा मारे गए थे जिसके परिणामस्वरूप वैदिक संस्कृति तथा सभ्यता का पतन हो गया था। यह युद्ध प्राचीन भारत के इतिहास का सबसे विध्वंसक और विनाशकारी युद्ध सिद्ध हुआ था। 
 
युद्ध के बाद भारतवर्ष की भूमि लम्बे समय तक वीर क्षत्रियों से विहीन रही थी। गांधारी के शापवश यादवों के वंश का भी विनाश हो गया। गांधारी ने अपने पुत्रों का अंत होते देख क्रोधित होकर एक ऐसा शाप दे दिया था जिसके फलस्वरूप सभी यदुवंशियों का समूल नाश हो गया था।
 
लगभग सभी यादव आपसी युद्ध में मारे गए थे। इसी के बाद श्रीकृष्ण ने भी अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार और अपना कार्य पूरा होने के पश्चात इस धरती से प्रयाण कर लिय़ा था।
 

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