तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
03 मार्च 2012
कोटा में मुसलमानों में अराजकता के लियें प्रशिक्षित मुस्लिम माहोल खराब कर रहे है
दोस्तों देश की तरक्की और खुश हाली का फार्मूला देख रहे हो ना ..आपके और हमारे तो समझ में आ गया लेकिन कुछ गद्दार है जो आज भी इस हकीकत को समझ नहीं पा रहे है कुछ हैं जो विदेशी ताकतों से मदद लेकर देश के हालात बिगाड़ने और ह म को में और तू बना कर तू तू मेमे करवाना चाह रहे है ......... दोस्तों गद्दारों और अराजकता फेलाने वालों का कोई धर्म कोई जाती नहीं होती और इन दिनों एक योजना के तहत देश में मुसलमानों से मुसलमानों को लडाने और उन्हें कमजोर करने के मंसूबे तय्यार किये गये है ..कोटा में यह जहरीला पोधा .कुछ लालची और कमजोर ईमान वालों को शामिल कर भाजपा के आर एस एस ने लगाया था जो अब असर दिखाने लगा है .... दोस्तों राजस्थान के अजमेर में पिछले दिनों एक बम विस्फोट की घटना में आर एस एस के जनाब इन्द्रेश कुमार जी को अभियुक्तों की सूचि में डाला गया था लेकिन कोंग्रेस सरकार ने उन्हें गिरफ्तार किये बगेर उन्हें मुक्त करते हुए अदालत में चार्ज शीट पेश कर दी ..जी हाँ ये वही इन्द्रेश जी है जिनके एक इशारे पर कोटा के एक मुफ्ती और कुछ मोलाना दो चार कथित पढ़े लिखे लोगों के साथ मिलकर कुछ भी कर गुजरने को तय्यार है ..मुफ्तियों और मोलानाओं को तो काफी मदद मिली .....तो जनाब हम बात कर रहे थे कोटा में आम मुसलमानों के बीच मुसलमानों के जरिये एक खतरनाक फसाद का माहोल बनाने की कोशिश करने की .और यह जहर यहाँ करीब दस वर्षों से फेलाने की कोशिशें थी ..एक कथित मुफ्ती जिनकी डिग्री आज तक किसी ने नहीं देखी जिन्हें तकवे पर चलते हुए आज तक किसी ने नहीं देखा वोह इन्द्रेश जी और इनकी माई हिदुस्तान ..राष्ट्रवादी मुस्लिम मंच में लगातार सक्रिय रहे है इनसे जुड़े लोग भी इनके साथ सक्रिय हो गये ..इन दिनों कोटा में इन लोगों द्वारा कोटा के शहर काजी को निचा दिखाने के लियें योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाने के लियें कहा गया है ताकि कोटा के मुसलमान वर्ग विभाजित हो जाए वोह तो शुक्र है खुदा का के यहाँ शहर काजी समझदार है और वोह हमेशा अपने समर्थकों को सब्र से काम लेने की सलाह दे रहे है .दूसरी तरफ कुछ लोग है जिन्हें ख़ास प्रिशिक्ष्ण दिया गया है के जब भी कोटा में किसी भी मुस्लिम धर्म का कोई भी जलसा हो वहां गिरोह बनाकर उसका विरोध किया जाये ..एक दुसरे से नफरत फेलाने की बात कहकर वर्ग विभाजित करने की बात करी जाए ...दोस्तों नफरत फेलाने का यह प्रशिक्ष्ण यहीं खत्म नहीं हो रहा है एक गिरोह जो कोटा में कोई भी मुस्लिम समाज का काम हो वहां किसी भी लीडर को बुलाया जाए तो कुछ लोग वहां जाकर किसी भी बहाने से हंगामे का माहोल खड़ा कर रहे है ..पिछले दिनों इस मामले में कोटा के आम मुसलमानों को समझाया भी गया था के अगर को भी अपनी बात कहना चाहता है तो वोह आगन्तुक नेता से सर्किट हाउस में जाकर कहे लेकिन किसी मुस्लिम तंजीम द्वारा बुलाये गये किसी भी कार्यक्रम को योजनाबद्ध तरीके से बिगाड़ने की साज़िश में शामिल नहीं हों लेकिन एक खास गिरोह मानने को तय्यार नहीं है ..मुस्लिमों के कल्याणकारी कार्यों को भी रुकवाने के लियें वोह किसी न किसी तरह फर्जी आरोप लगाकर काम रुकवाने की जुगत में लगे हुए है ,,,तो दोस्तों कोटा में अब मुसलमानों को दुश्मनों की जरूरत नहीं है यहाँ तो एक वर्ग आर एस एस समर्थक ऐसा तय्यार हो गया है जो आपस में ही दुश्मनी का माहोल बना रहा है ..खुदा खेर करे अगर यह गुटबाजी और नफरत की राजनीति कहती रही तो कोटा में अगर माहोल ग्राम हुआ तो इससे कोटा की सुक्ख शांति भंग होगी और इससे देश का ही नुकसान है यह बात कोटा के कथित राष्ट्रभक्त मुसलमान जो बिना किसी रोज़गार के अज्ञात स्त्रोत से मिली आय से अपना जीवन यापन कर रहे है समझने को तय्यार नहीं है के किसी भी अराजकता से किसी जाती ..किसी धर्म किसी समुदाय या किसी राजनितिक पार्टी का फायदा नुकसान नहीं है इससे तो पुरे देश पुरे राष्ट्र का नुकसान है .......अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
दुष्यंत-शकुन्तला की प्रणय-प्रसंग और भरत की क्रीडा स्थली है ये!
-डॉ. जगतनारायण (इतिहासकार)।
‘हमारे माता और पिता अगर बूढ़े हो जाएं, उनके बाल सफेद और दांत गिर जाएं तो क्या हम उनके पास जाना छोड़ देते हैं? तब क्या हम उनके अस्तित्व को नकार देते हैं? बिल्कुल नहीं, बल्कि हम उनकी ज्यादा देखभाल और फिक्र करते हैं। आश्चर्य की बात है कि मेरे नगरवासी यहां की इतिहास प्रसिद्ध महान थाती से अपरिचित हैं।
हां, हम चर्चा कर रहे हैं, कोटा स्थित पवित्र कण्वाश्रम तीर्थ की महत्ता की। जिसके नाम पर आज कंसुआ बस्ती बसी हुई है। यह सही है कि आज यह स्थान इसके आसपास गंदगी और टूटफूट से विकृत नजर आता है लेकिन इसके अंतरंग में जो प्राचीनतम भव्य गौरवशाली स्मारक है उसको जानने का कोई प्रयास नहीं करता।
आज की कंसुआ बस्ती जो एक नाले के किनारे बसी हुई है। उसका इतना चौड़ा पाट है कि यह अवश्य कभी कोई नदी रही होगी। यह नदी दक्षिण पश्चिम दिशा से आती हुई जहां पूर्वमुखी होती है, वहीं पर एक प्राचीन मंदिर है। हमारे धर्मग्रंथों में यह कहा जाता है कि जहां नदी पूर्वमुखी होती है वहां बनाए गए मंदिर को तीर्थ माना जाता है।
इसलिए इस मंदिर को पुरातनकाल से कंसुआ तीर्थ कहा जाता है। यहां जो प्राचीन शिवमंदिर खड़ा हुआ है इसका निर्माण विक्रमी संवत 795 यानि 738 ईस्वी में हुआ था। इस हिसाब से यह मंदिर 1274 साल पुराना है। कभी किसी आक्रांता द्वारा या हमारी लापरवाही के कारण यह मंदिर भग्न हो गया था और इसका शिखर टूट गया था।
बाद में जब इसका पुनरुद्धार किया गया तो छावना (लेंटल) स्तर तक यह मूल मंदिर था और इसका शिखर बाद में बनाया गया। इस मंदिर के दाहिनी दीवार पर एक शिलालेख लगा हुआ है, जिसमें इस मंदिर के निर्माण का उल्लेख हुआ है। हिंदी के महाकवि जयशंकर प्रसाद ने अपने नाटक ‘चंद्रगुप्त’ की भूमिका में इस शिलालेख का उल्लेख किया है। इस शिलालेख को कुटिल लिपि में लिखे गए देश के श्रेष्ठतम शिलालेखों में से शीर्ष माना जाता है।
शिलालेख में इस स्थान को प्राचीनतम धार्मिक तीर्थस्थल उल्लेखित करने के साथ ही लिखा हुआ है कि यह प्राचीनतम कण्व आश्रम है। इसलिए ही इस स्थान की महत्ता को समझकर चित्तौड़ के राजा धवल मौर्य के सामंत शिवगण ने विक्रमी संवत 795 में इस मंदिर का निर्माण कराया था। शिवगण ब्राrाण था और उसने शिवमंदिर का निर्माण कराके वैदिक ऋषि महर्षि कण्व के आश्रम को हमेशा के लिए अमर बना दिया। हमारी कोटा नगरी धन्य है, जहां कि वैदिक कालीन महर्षि कण्व ने अपना आश्रम बनाया था। मंदिर का समय समय पर कोटा के हाड़ा वंशीय शासकों ने भी जीर्णोद्धार कराया।
मूर्तिकला की बेजोड़ मिसाल है कंसुआधाम
कंसुआधाम में छावना तक जो मूल मंदिर है, वह आठवीं शताब्दी की मंदिर व मूर्तिकला की बेजोड़ मिसाल है। हमारे स्थापत्य और मंदिर निर्माण में जिन पुरातन शास्त्रसम्मत विधान का उल्लेख है, उसका इस मंदिर निर्माण में पूर्णतया पालन हुआ है। इसकी पत्थरों की पॉलिश मूर्तियों की सुघड़ता भव्य होने के साथ ही बड़ी ही भव्य आकर्षक महसूस होती है।
मुख्य मंदिर के सामने जो पंचमुखी शिवलिंग है वह मूर्तिकला का अनुपम उदाहरण है। यूं तो पूरा परिसर शिवलिंग से भरा हुआ है। लगता है हर काल में प्रमुख श्रद्धालुओं ने यहां एक-एक शिवलिंग की स्थापना की होगी। नाले के किनारे चबूतरे पर सहस्त्र शिवलिंग बना हुआ है, जिसमें मुख्य शिवलिंग पर 999 छोटे शिवलिंग उत्कीर्ण हैं।
भरत की जन्मस्थली शोध का विषय
पहले जब हमें ज्ञात था कि देश में केवल यही कोटा का कंसुआ धाम महर्षि कण्व का आश्रम था। तब हम बड़े दावे से कहते थे कि शकुंतला इसी आश्रम में रहती थी और उनकी कोख से भारत के प्रतापी नरेश भरत का जन्म इसी जगह हुआ था। लेकिन अब देश के कुछेक स्थानों से महर्षि कण्व का आश्रम होने के समाचार आने लगे तो हमारे लिए यह शोध का विषय हो गया कि भरत का जन्म किस कण्व आश्रम में हुआ था।
शकुंतला का जन्म अजमेर के पुष्कर में महर्षि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका के संसर्ग से हुआ था। पुष्कर से वापस लौटते समय मेनका अपनी नवजात पुत्री शकुंतला को पालन पोषण के लिए कण्व ऋषि के आश्रम के समीप छोड़ गई थी। कोटा पुष्कर के नजदीक होने से हमारा एक ध्यान यह भी जाता है कि शायद इसी स्थान पर शकुंतला रही हो।
पवित्र स्नान का पुण्य और गोठ का मजा था यहां
कंसुआधाम का स्मारक (शिवालय) तो सुरक्षित है लेकिन बाहर का ऐतिहासिक परिसर गंदगी से अटा है। पुराने समय में यह परिसर कोटा क्षेत्र के लोगों के लिए पवित्र स्नान और गोठ का स्थान था। परिसर के बीच में बहुत ही सुंदर चौकोर कुंड बना हुआ है, जिसमें किसी समय स्वच्छ निर्मल जल भरा रहता था। एक झरने के रूप में यह पानी गिरता था।
यह झरना इस नदी के ऊपर बनाए गए बंधे से गिरता था। वहां विपुल जलराशि रहती थी जिससे नाला निरंतर भरता रहता था। बाद में इस तीर्थ स्थली के आसपास अनेक कारखाने लगने और बस्ती की गंदगी से इस जलराशि के जल संग्रहण स्थल को पूरी तरह पाट दिया गया। बरसात के पानी को भी लोग गंदगी डालकर दूषित कर देते हैं जो 12 माह इस जगह भरा रहता है।
प्राचीन नदी व नाले का उपयोग खुले शौचालय के रूप में किया जा रहा है। विडंबना है कि प्रशासन इस गौरवमयी तीर्थस्थली के रखरखाव व सौंदर्यीकरण का जिम्मा नहीं निभाता। कुंड के आसपास जो गोठ करने, भोजन बनाने के कक्ष थे वे भी भग्न अवस्था में हैं और उनकी मरम्मत पर कोई ध्यान नहीं देता।
कंसुआ मार्ग और भरत सर्किल के बोर्ड लगे
कोटात्न डीसीएम रोड को कंसुआधाम रोड व चौराहे का भरत के नाम पर नामकरण करने के लिए प्रयास शुरू हो गए हैं। मंदिर मठ बचाओ समिति के सदस्यों ने इसकी मुहिम छेड़ दी है। शनिवार को एरोड्रम सर्किल व रेलवे पुलिया के पास कंसुआधाम रोड के बोर्ड लगाए गए। इसी प्रकार चौराहे पर भरत सर्किल का बोर्ड लगाया गया। क्षेत्रवासियों ने तालियों के साथ इसका स्वागत किया। उन्होंने कहा कि पहली बार कंसुआधाम को अंधियारे से बाहर निकालने का कार्य हो रहा है। इसमें कंसुआधाम का पूरा सहयोग है।
समिति के सदस्य क्रांति तिवारी के नेतृत्व में शनिवार को दोपहर बाद कंसुआ क्षेत्र में पहुंचे। उन्होंने वहां चौराहे पर पहुंचकर भरत चौराहा के नाम का बोर्ड वहां लगाया। इस दौरान आसपास के नागरिक बड़ी संख्या में मौजूद थे। उन्होंने कहा कि अब इस चौराहे को भरत चौराहे के नाम से ही जाना जाएगा। इसके बाद सदस्यों ने रेलवे पुलिया के पास तथा एरोड्रम सर्किल के पास कंसुआधाम रोड को इंगित करने वाले बोर्ड लगाए। अब डीसीएम रोड का नाम कंसुआधाम रोड के नाम से ही जाना जाएगा।
धारीवाल के पास पहुंचे
समिति के सदस्यों ने शाम को नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल को भी ज्ञापन दिया। उन्होंने धारीवाल को बताया कि क्षेत्रवासियों के साथ ही आमजन की भी इच्छा है कि डीसीएम रोड का नाम कंसुआ रोड व चौराहे का नाम भरत चौराहा रखा जाए। उन्होंने इस बारे में विस्तार से जानकारी भी ली। धारीवाल ने इस संबंध में यूआईटी अधिकारियों से चर्चा करने का आश्वासन दिया।
इस कार्य में सहयोग करने वालों में जुगल शर्मा, राहुल मिश्रा, दिनेश जोशी धर्मेंद्र शर्मा, दिलीप गुर्जर, मनीष एडवोकेट, रिंकू गुर्जर, बद्री मेघवाल, मुकेश भटनागर आदि मौजूद थे। उधर, कंसुआधाम पर गुप्त शिवलिंग वाले कमरे की सफाई का कार्य जारी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग 10 मार्च तक इस कार्य को पूरा करने की तैयारी में जुटा हुआ है, ताकि 11 व 12 को यहां लोगों को दर्शन करने में किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो।
अब सांप भी सरकारी संपत्ति, गले में लटकाया तो जुर्माना और जेल
वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में है प्रावधान
चंडीगढ़ प्रशासन के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन संतोष कुमार ने बताया कि सांप व अजगर को अवैध तरीके से गले में टांगने और उन पर अत्याचार करने के लिए वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत 25 हजार रुपये जुर्माना और 3 साल की सजा का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि शहर में अवैध रूप से सांप और अजगर गले में टांगकर ढोंगी बाबा घूमते फिरते हैं। हाल ही में शिवरात्रि पर एक अजगर के गले पर रस्सी बांधकर उस पर अत्याचार करने का मामला भी सामने आया था। इसके चलते प्रशासन ने यह कदम उठाया है। ध्यान रहे कि शिवरात्रि पर मोहाली और सेक्टर 39 प्रशासन के वन विभाग को इस तरह की शिकायतें मिली थीं।
शिकायतें मिली थी
शिवरात्रि के समय में एक दो शिकायतें मिली हैं। कई त्योहार इन जानवरों से जुड़े रहे हैं। यह जानवर सरकारी संपत्ति हैं। सभी मंदिरों के पुजारियों और मंदिर प्रबंधनों को लिखा गया है कि इनके साथ छेड़छाड़ न की जाए। अगर फिर भी इनके साथ छेड़छाड़ की शिकायत आती है तो संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी।
बारात का जनकपुर में आना और स्वागतादि
भरे सुधा सम सब पकवाने। नाना भाँति न जाहिं बखाने॥1॥
भूषन बसन महामनि नाना। खग मृग हय गय बहुबिधि जाना॥2॥
दधि चिउरा उपहार अपारा। भरि भरि काँवरि चले कहारा॥3॥
देखि बनाव सहित अगवाना। मुदित बरातिन्ह हने निसाना॥4॥
जनु आनंद समुद्र दुइ मिलत बिहाइ सुबेल॥305॥
बस्तु सकल राखीं नृप आगें। बिनय कीन्हि तिन्ह अति अनुरागें॥1॥
करि पूजा मान्यता बड़ाई। जनवासे कहुँ चले लवाई॥2॥
अति सुंदर दीन्हेउ जनवासा। जहँ सब कहुँ सब भाँति सुपासा॥3॥
हृदयँ सुमिरि सब सिद्धि बोलाईं। भूप पहुनई करन पठाईं॥4॥
लिएँ संपदा सकल सुख सुरपुर भोग बिलास॥306॥
बिभव भेद कछु कोउ न जाना। सकल जनक कर करहिं बखाना॥1॥
पितु आगमनु सुनत दोउ भाई। हृदयँ न अति आनंदु अमाई॥2॥
बिस्वामित्र बिनय बड़ि देखी। उपजा उर संतोषु बिसेषी॥3॥
चले जहाँ दसरथु जनवासे। मनहुँ सरोबर तकेउ पिआसे॥4॥
उठे हरषि सुखसिंधु महुँ चले थाह सी लेत॥307॥
कौसिक राउ लिए उर लाई। कहि असीस पूछी कुसलाई॥1॥
सुत हियँ लाइ दुसह दुख मेटे। मृतक सरीर प्रान जनु भेंटे॥2॥
बिप्र बृंद बंदे दुहुँ भाईं। मनभावती असीसें पाईं॥3॥
हरषे लखन देखि दोउ भ्राता। मिले प्रेम परिपूरित गाता॥4॥
मिले जथाबिधि सबहि प्रभु परम कृपाल बिनीत॥308॥
नृप समीप सोहहिं सुत चारी। जनु धन धरमादिक तनुधारी॥1॥
सुमन बरिसि सुर हनहिं निसाना। नाकनटीं नाचहिं करि गाना॥2॥
सहित बरात राउ सनमाना। आयसु मागि फिरे अगवाना॥3॥
ब्रह्मानंदु लोग सब लहहीं। बढ़हुँ दिवस निसि बिधि सन कहहीं॥4॥
जहँ तहँ पुरजन कहहिं अस मिलि नर नारि समाज॥309॥
इन्ह सम काहुँ न सिव अवराधे। काहुँ न इन्ह समान फल लाधे॥1॥
हम सब सकल सुकृत कै रासी। भए जग जनमि जनकपुर बासी॥2॥
पुनि देखब रघुबीर बिआहू। लेब भली बिधि लोचन लाहू॥3॥
बड़ें भाग बिधि बात बनाई। नयन अतिथि होइहहिं दोउ भाई॥4॥
लेन आइहहिं बंधु दोउ कोटि काम कमनीय॥310॥
तब तब राम लखनहि निहारी। होइहहिं सब पुर लोग सुखारी॥1॥
स्याम गौर सब अंग सुहाए। ते सब कहहिं देखि जे आए॥2॥
भरतु राम ही की अनुहारी। सहसा लखि न सकहिं नर नारी॥3॥
मन भावहिं मुख बरनि न जाहीं। उपमा कहुँ त्रिभुवन कोउ नाहीं॥4॥
बल बिनय बिद्या सील सोभा सिंधु इन्ह से एइ अहैं॥
पुर नारि सकल पसारि अंचल बिधिहि बचन सुनावहीं॥
ब्याहिअहुँ चारिउ भाइ एहिं पुर हम सुमंगल गावहीं॥
सखि सबु करब पुरारि पुन्य पयोनिधि भूप दोउ॥311॥
जे नृप सीय स्वयंबर आए। देखि बंधु सब तिन्ह सुख पाए॥1॥
गए बीति कछु दिन एहि भाँती। प्रमुदित पुरजन सकल बराती॥2॥
ग्रह तिथि नखतु जोगु बर बारू। लगन सोधि बिधि कीन्ह बिचारू॥3॥
सुनी सकल लोगन्ह यह बाता। कहहिं जोतिषी आहिं बिधाता॥4॥
बिप्रन्ह कहेउ बिदेह सन जानि सगुन अनुकूल॥312॥
सतानंद तब सचिव बोलाए। मंगल सकल साजि सब ल्याए॥1॥
सुभग सुआसिनि गावहिं गीता। करहिं बेद धुनि बिप्र पुनीता॥2॥
कोसलपति कर देखि समाजू। अति लघु लाग तिन्हहि सुरराजू॥3॥
गुरहि पूछि करि कुल बिधि राजा। चले संग मुनि साधु समाजा॥4॥
लगे सराहन सहस मुख जानि जनम निज बादि॥313॥
सिव ब्रह्मादिक बिबुध बरूथा। चढ़े बिमानन्हि नाना जूथा॥1॥
देखि जनकपुरु सुर अनुरागे। निज निज लोक सबहिं लघु लागे॥2॥
नगर नारि नर रूप निधाना। सुघर सुधरम सुसील सुजाना॥3॥
बिधिहि भयउ आचरजु बिसेषी। निज करनी कछु कतहुँ न देखी॥4॥
हृदयँ बिचारहु धीर धरि सिय रघुबीर बिआहु॥314॥
करतल होहिं पदारथ चारी। तेइ सिय रामु कहेउ कामारी॥1॥
देवन्ह देखे दसरथु जाता। महामोद मन पुलकित गाता॥2॥
सोहत साथ सुभग सुत चारी। जनु अपबरग सकल तनुधारी॥3॥
पुनि रामहि बिलोकि हियँ हरषे। नृपहि सराहि सुमन तिन्ह बरषे॥4॥
पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि॥315॥
ब्याह बिभूषन बिबिध बनाए। मंगल सब सब भाँति सुहाए॥1॥
सकल अलौकिक सुंदरताई। कहि न जाई मनहीं मन भाई॥2॥
राजकुअँर बर बाजि देखावहिं। बंस प्रसंसक बिरिद सुनावहिं॥3॥
कहि न जाइ सब भाँति सुहावा। बाजि बेषु जनु काम बनावा॥4॥
आपनें बय बल रूप गुन गति सकल भुवन बिमोहई॥
जगमगत जीनु जराव जोति सुमोति मनि मानिक लगे।
किंकिनि ललाम लगामु ललित बिलोकिसुर नर मुनि ठगे॥
भूषित उड़गन तड़ित घनु जनु बर बरहि नचाव॥316॥
संकरु राम रूप अनुरागे। नयन पंचदस अति प्रिय लागे॥1॥
निरखि राम छबि बिधि हरषाने। आठइ नयन जानि पछिताने॥2॥
रामहि चितव सुरेस सुजाना। गौतम श्रापु परम हित माना॥3॥
मुदित देवगन रामहि देखी। नृपसमाज दुहुँ हरषु बिसेषी॥4॥
बरषहिं सुमन सुर हरषि कहि जय जयति जय रघुकुलमनी॥
एहि भाँति जानि बरात आवत बाजने बहु बाजहीं।
रानी सुआसिनि बोलि परिछनि हेतु मंगल साजहीं॥
चलीं मुदित परिछनि करन गजगामिनि बर नारि॥317॥
पहिरें बरन बरन बर चीरा। सकल बिभूषन सजें सरीरा॥1॥
कंकन किंकिनि नूपुर बाजहिं। चालि बिलोकि काम गज लाजहिं॥2॥
सची सारदा रमा भवानी। जे सुरतिय सुचि सजह सयानी॥3॥
करहिं गान कल मंगल बानीं। हरष बिबस सब काहुँ न जानीं॥4॥
कल गान मधुर निसान बरषहिं सुमन सुर सोभा भली॥
आनंदकंदु बिलोकि दूलहु सकलहियँ हरषित भई।
अंभोज अंबक अंबु उमगि सुअंग पुलकावलि छई॥
सो न सकहिं कहि कलप सत सहस सारदा सेषु॥318॥
बेद बिहित अरु कुल आचारू। कीन्ह भली बिधि सब ब्यवहारू॥1॥
करि आरती अरघु तिन्ह दीन्हा। राम गमनु मंडप तब कीन्हा॥2॥
समयँ समयँ सुर बरषहिं फूला। सांति पढ़हिं महिसुर अनुकूला॥3॥
एहि बिधि रामु मंडपहिं आए। अरघु देइ आसन बैठाए॥4॥
मनि बसन भूषन भूरि वारहिं नारि मंगल गावहीं॥
ब्रह्मादि सुरबर बिप्र बेष बनाइ कौतुक देखहीं।
अवलोकि रघुकुल कमल रबि छबि सुफल जीवन लेखहीं॥
मुदित असीसहिं नाइ सिर हरषु न हृदयँ समाइ॥319॥
मिलत महा दोउ राज बिराजे। उपमा खोजि खोजि कबि लाजे॥1॥
सामध देखि देव अनुरागे। सुमन बरषि जसु गावन लागे॥2॥
सकल भाँति सम साजु समाजू। सम समधी देखे हम आजू॥3॥
देत पाँवड़े अरघु सुहाए। सादर जनकु मंडपहिं ल्याए॥4॥
निज पानि जनक सुजान सब कहुँ आनि सिंघासन धरे॥
कुल इष्ट सरिस बसिष्ट पूजे बिनय करि आसिष लही।
कौसिकहि पूजन परम प्रीति कि रीति तौ न परै कही॥
दिए दिब्य आसन सबहि सब सन लही असीस॥320॥
कीन्हि जोरि कर बिनय बड़ाई। कहि निज भाग्य बिभव बहुताई॥1॥
आसन उचित दिए सब काहू। कहौं काह मुख एक उछाहू॥2॥
बिधि हरि हरु दिसिपति दिनराऊ। जे जानहिं रघुबीर प्रभाऊ॥3॥
पूजे जनक देव सम जानें। दिए सुआसन बिनु पहिचानें॥4॥
आनंद कंदु बिलोकि दूलहु उभय दिसि आनँदमई॥
सुर लखे राम सुजान पूजे मानसिक आसन दए।
अवलोकि सीलु सुभाउ प्रभु को बिबुध मन प्रमुदित भए॥
करत पान सादर सकल प्रेमु प्रमोदु न थोर॥321॥
बेगि कुअँरि अब आनहु जाई। चले मुदित मुनि आयसु पाई॥1॥
बिप्र बधू कुल बृद्ध बोलाईं। करि कुल रीति सुमंगल गाईं॥2॥
तिन्हहि देखि सुखु पावहिं नारी। बिनु पहिचानि प्रानहु ते प्यारीं॥3॥
सीय सँवारि समाजु बनाई। मुदित मंडपहिं चलीं लवाई॥4॥
आमलकी एकादशी 4 को, करें आंवला वृक्ष का पूजन
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं। यह एकादशी सभी पापों का नाश करने वाली है। इस दिन व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। इस दिन विशेष रूप से आंवला वृक्ष की पूजा की जाती है। इस बार यह एकादशी 4 मार्च, रविवार को है।
आमलकी यानी आंवला को हिंदू धर्म शास्त्रों में उसी प्रकार श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है जैसा नदियों में गंगा को प्राप्त है और देवों में भगवान विष्णु को। मान्यता के अनुसार विष्णुजी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया। आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है। आमलकी एकादशी के दिन आंवला वृक्ष का स्पर्श करने से दुगुना व इसके फल खाने से तिगुना पुण्य प्राप्त होता है। आंवला वृक्ष के मूल भाग में विष्णु, ऊपर ब्रह्मा, तने में रुद्र, शाखाओं में मुनिगण, टहनियों में देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुदगण और फलों में समस्त प्रजापति वास करते हैं।
भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो पुष्य नक्षत्र में एकादशी आती है उस एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है।
जहां एक साथ तीन पीढियां सुनाती हैं भगवान को 'गालियां'!
ग्यारस से प्रारंभ होती है गेरें: पुष्करणा समाज की ओर से ग्यारस के दिन दुर्ग स्थित नगर अराध्य श्रीलक्ष्मीनाथ मंदिर से गेर प्रारंभ की जाती है। इसे गेरियों की ग्यारस कहा जाता है। इस बार गेरियों की ग्यारस 4 मार्च को है। दुर्ग से रवाना होकर गोपा चौक, जिंदानी चौक, गांधी चौक होते हुए महारावल के निवास पर पहुंचती है।
महारावल के निवास पर यहां के पुष्करणा ब्राह्मणों द्वारा महारावल को भी श्लील ख्याल सुनाए जाते है। महारावल के निवास से यह गेरे अपने-अपने धड़ों के अनुसार बंट जाती है। होलीका दहन से एक दिन पहले गड़सीसर स्थित बगेचियों में गोठ होती है।जिसकी रात्रि को फिर से समाज के समस्त धड़ों द्वार गेर निकाली जाती है।जो गड़सीसर गेट से प्रारंभ होकर चैनपुरा में समाप्त होती है।भगवान भी सुनते है गेरियों की:
गेरियों की श्लील ख्यालों से कोई भी अछूता नहीं रहता। आमजन से लेकर भगवान को भी सुनाए जाते है। होली के उल्लास व उमंग में भावविभोर होकर गेरिये भगवान को भी ख्याल सुनाते है। आसनी स्थित मिलाप मंदिर में ठाकुरजी को भी ख्याल सुनाए जाते है।
वयोवृद्ध मुकुनलाल जगाणी ने बताया कि हमारे जमाने में जब होली की गेर निकलती थी तब अन्य समाजों की महिलाएं एवं पुरुष गोपा चौक में एकत्र होकर इनका लुत्फ उठाते थे। प्रमुख रूप से सगे संबंधियों को गालियों से संबोधित किया जाता था। जहां पर भायप होती है वहां श्लील गालियां नहीं गाई जाती।
कई नियमों का रखा जाता है ध्यानभंवरलाल गोपा ने बताया कि ग्यारस से प्रारंभ होने वाली इन गेरों में कई चीजों का विशेष ध्यान रखा जाता है। दुर्ग की अखे प्रोल से प्रारंभ होती है तथा जिंदानी चौक तथा गांधी चौक में श्लील ख्याल नहीं गाए जाते है। साथ ही उन मौहल्लों में भी गालियां नहीं गाई जाती है जहां संबंधित धड़ों की भायप होती है। जैसे ही गेरे जिंदानी चौक पहुंचती है तो फाग के गीत प्रारंभ होते है वहीं गांधी चौक में भी गेरियों द्वारा फाग गाई जाती है।
तीन पीढ़ियां एक साथ गाती हैं गालियां
किसी के साथ भी छेड़खानी नहीं की जाती और न ही किसी व्यक्ति विशेष को सुनाए जाते हैं। गेरों में पांच साल के बच्चों से लेकर 70 साल तक के वृद्ध भी उल्लास के साथ भाग लेते हैं। इन गेरों में दादा-अपने पोते के साथ तो चाचा अपने भतीजे के साथ गालियां गाते दिखाई देते हैं।
चंग की थाप व झांझ की झनक पर गुलाल उड़ाते गेरियों का अलग ही अंदाज है। होली के त्यौहार पर श्लील ख्याल गाने की छूट होने के कारण सभी एक साथ मिलकर इसका लुत्फ उठाते हैं। बड़ों से लेकर छोटे तक गीत गाते है वह भी अदब में।ऐसा होता है मौत का अपशकुन: बच के रहें अगर ऐसे इशारे देने लगे कौआ
सिर्फ पितरों के दिनों में ही कौओं पर ध्यान न दें रोजमर्रा में भी कौओं पर ध्यान देना चाहिए। अगर आपके साथ कुछ अशुभ होने वाला है तो कौए इशारे से बता देते हैं। कोओं को अशुभ इसलिए माना जाता है क्योंकि इनको मौत या कोई बड़ा संकट आने से पहले एहसास हो जाता है और ये संकेत दे देते हैं।
- यदि किसी व्यक्ति के ऊपर कौआ आकर बैठ जाए तो उसे धन व सम्मान की हानि होती है। यदि किसी महिला के सिर पर कौआ बैठता है तो उसके पति को मौत के समान गंभीर संकट का सामना करना पड़ता है।
- किसी के घर पर कौओं का झुण्ड आकर शौर मचाए तो मालिक पर कई संकट एक साथ आ जाते हैं।
- यदि बहुत से कौए किसी नगर या गांव में इक_े होकर शौर करें तो उस नगर या गांव पर भारी विपत्ति आती है।
- यदि उड़ता हुआ कौआ किसी के सिर पर बीट करे तो उसे रोग व संताप होता है। और यदि हड्डी का टुकड़ा गिरा दे तो उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
- यदि कौआ पंख फडफड़़ाता हुआ उग्र स्वर में बोलता है तो यह अशुभ संकेत है।
- यदि कौआ ऊपर मुंह करके पंखों को फडफड़़ाता है और कर्कश स्वर में आवाज करता है तो वह मृत्यु की सूचना देता है।