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03 मार्च 2012

दुष्यंत-शकुन्तला की प्रणय-प्रसंग और भरत की क्रीडा स्थली है ये!


वैदिक ऋषि कण्व की तपोस्थली कंसुआ शिव मंदिर की प्राचीनतम और आध्यात्मिक वैभवता के साथ कई ऐसे प्रसंग जुड़े हैं, जिनकी सत्यता प्रामाणिकता इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। देश के कुछेक प्राचीनतम धार्मिक स्थलों की सूची में दर्ज कंसुआ धाम शिवालय और इसके आसपास मौजूद सैकडों साल पुरानी पुरासंपदा वह अनमोल धरोहर है, जिस पर इस शहर को गर्व होना चाहिए। दुष्यंत-शकुंतला के प्रणय प्रसंग और उससे जन्मे महाप्रतापी भरत की क्रीड़ा स्थली है यह। वे ही भरत, जिनके नाम पर हमारे देश का नामकरण हुआ। भला इससे बड़ा गौरव और क्या हो सकता है। प्रत्येक शहरवासी का दायित्व है कि वह न केवल इसे सहेजे बल्कि दुनिया को इसके बारे में बताए भी।

-डॉ. जगतनारायण (इतिहासकार)।

‘हमारे माता और पिता अगर बूढ़े हो जाएं, उनके बाल सफेद और दांत गिर जाएं तो क्या हम उनके पास जाना छोड़ देते हैं? तब क्या हम उनके अस्तित्व को नकार देते हैं? बिल्कुल नहीं, बल्कि हम उनकी ज्यादा देखभाल और फिक्र करते हैं। आश्चर्य की बात है कि मेरे नगरवासी यहां की इतिहास प्रसिद्ध महान थाती से अपरिचित हैं।

हां, हम चर्चा कर रहे हैं, कोटा स्थित पवित्र कण्वाश्रम तीर्थ की महत्ता की। जिसके नाम पर आज कंसुआ बस्ती बसी हुई है। यह सही है कि आज यह स्थान इसके आसपास गंदगी और टूटफूट से विकृत नजर आता है लेकिन इसके अंतरंग में जो प्राचीनतम भव्य गौरवशाली स्मारक है उसको जानने का कोई प्रयास नहीं करता।

आज की कंसुआ बस्ती जो एक नाले के किनारे बसी हुई है। उसका इतना चौड़ा पाट है कि यह अवश्य कभी कोई नदी रही होगी। यह नदी दक्षिण पश्चिम दिशा से आती हुई जहां पूर्वमुखी होती है, वहीं पर एक प्राचीन मंदिर है। हमारे धर्मग्रंथों में यह कहा जाता है कि जहां नदी पूर्वमुखी होती है वहां बनाए गए मंदिर को तीर्थ माना जाता है।

इसलिए इस मंदिर को पुरातनकाल से कंसुआ तीर्थ कहा जाता है। यहां जो प्राचीन शिवमंदिर खड़ा हुआ है इसका निर्माण विक्रमी संवत 795 यानि 738 ईस्वी में हुआ था। इस हिसाब से यह मंदिर 1274 साल पुराना है। कभी किसी आक्रांता द्वारा या हमारी लापरवाही के कारण यह मंदिर भग्न हो गया था और इसका शिखर टूट गया था।

बाद में जब इसका पुनरुद्धार किया गया तो छावना (लेंटल) स्तर तक यह मूल मंदिर था और इसका शिखर बाद में बनाया गया। इस मंदिर के दाहिनी दीवार पर एक शिलालेख लगा हुआ है, जिसमें इस मंदिर के निर्माण का उल्लेख हुआ है। हिंदी के महाकवि जयशंकर प्रसाद ने अपने नाटक ‘चंद्रगुप्त’ की भूमिका में इस शिलालेख का उल्लेख किया है। इस शिलालेख को कुटिल लिपि में लिखे गए देश के श्रेष्ठतम शिलालेखों में से शीर्ष माना जाता है।

शिलालेख में इस स्थान को प्राचीनतम धार्मिक तीर्थस्थल उल्लेखित करने के साथ ही लिखा हुआ है कि यह प्राचीनतम कण्व आश्रम है। इसलिए ही इस स्थान की महत्ता को समझकर चित्तौड़ के राजा धवल मौर्य के सामंत शिवगण ने विक्रमी संवत 795 में इस मंदिर का निर्माण कराया था। शिवगण ब्राrाण था और उसने शिवमंदिर का निर्माण कराके वैदिक ऋषि महर्षि कण्व के आश्रम को हमेशा के लिए अमर बना दिया। हमारी कोटा नगरी धन्य है, जहां कि वैदिक कालीन महर्षि कण्व ने अपना आश्रम बनाया था। मंदिर का समय समय पर कोटा के हाड़ा वंशीय शासकों ने भी जीर्णोद्धार कराया।

मूर्तिकला की बेजोड़ मिसाल है कंसुआधाम

कंसुआधाम में छावना तक जो मूल मंदिर है, वह आठवीं शताब्दी की मंदिर व मूर्तिकला की बेजोड़ मिसाल है। हमारे स्थापत्य और मंदिर निर्माण में जिन पुरातन शास्त्रसम्मत विधान का उल्लेख है, उसका इस मंदिर निर्माण में पूर्णतया पालन हुआ है। इसकी पत्थरों की पॉलिश मूर्तियों की सुघड़ता भव्य होने के साथ ही बड़ी ही भव्य आकर्षक महसूस होती है।

मुख्य मंदिर के सामने जो पंचमुखी शिवलिंग है वह मूर्तिकला का अनुपम उदाहरण है। यूं तो पूरा परिसर शिवलिंग से भरा हुआ है। लगता है हर काल में प्रमुख श्रद्धालुओं ने यहां एक-एक शिवलिंग की स्थापना की होगी। नाले के किनारे चबूतरे पर सहस्त्र शिवलिंग बना हुआ है, जिसमें मुख्य शिवलिंग पर 999 छोटे शिवलिंग उत्कीर्ण हैं।


भरत की जन्मस्थली शोध का विषय

पहले जब हमें ज्ञात था कि देश में केवल यही कोटा का कंसुआ धाम महर्षि कण्व का आश्रम था। तब हम बड़े दावे से कहते थे कि शकुंतला इसी आश्रम में रहती थी और उनकी कोख से भारत के प्रतापी नरेश भरत का जन्म इसी जगह हुआ था। लेकिन अब देश के कुछेक स्थानों से महर्षि कण्व का आश्रम होने के समाचार आने लगे तो हमारे लिए यह शोध का विषय हो गया कि भरत का जन्म किस कण्व आश्रम में हुआ था।

शकुंतला का जन्म अजमेर के पुष्कर में महर्षि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका के संसर्ग से हुआ था। पुष्कर से वापस लौटते समय मेनका अपनी नवजात पुत्री शकुंतला को पालन पोषण के लिए कण्व ऋषि के आश्रम के समीप छोड़ गई थी। कोटा पुष्कर के नजदीक होने से हमारा एक ध्यान यह भी जाता है कि शायद इसी स्थान पर शकुंतला रही हो।


पवित्र स्नान का पुण्य और गोठ का मजा था यहां

कंसुआधाम का स्मारक (शिवालय) तो सुरक्षित है लेकिन बाहर का ऐतिहासिक परिसर गंदगी से अटा है। पुराने समय में यह परिसर कोटा क्षेत्र के लोगों के लिए पवित्र स्नान और गोठ का स्थान था। परिसर के बीच में बहुत ही सुंदर चौकोर कुंड बना हुआ है, जिसमें किसी समय स्वच्छ निर्मल जल भरा रहता था। एक झरने के रूप में यह पानी गिरता था।

यह झरना इस नदी के ऊपर बनाए गए बंधे से गिरता था। वहां विपुल जलराशि रहती थी जिससे नाला निरंतर भरता रहता था। बाद में इस तीर्थ स्थली के आसपास अनेक कारखाने लगने और बस्ती की गंदगी से इस जलराशि के जल संग्रहण स्थल को पूरी तरह पाट दिया गया। बरसात के पानी को भी लोग गंदगी डालकर दूषित कर देते हैं जो 12 माह इस जगह भरा रहता है।

प्राचीन नदी व नाले का उपयोग खुले शौचालय के रूप में किया जा रहा है। विडंबना है कि प्रशासन इस गौरवमयी तीर्थस्थली के रखरखाव व सौंदर्यीकरण का जिम्मा नहीं निभाता। कुंड के आसपास जो गोठ करने, भोजन बनाने के कक्ष थे वे भी भग्न अवस्था में हैं और उनकी मरम्मत पर कोई ध्यान नहीं देता।

कंसुआ मार्ग और भरत सर्किल के बोर्ड लगे

कोटात्न डीसीएम रोड को कंसुआधाम रोड व चौराहे का भरत के नाम पर नामकरण करने के लिए प्रयास शुरू हो गए हैं। मंदिर मठ बचाओ समिति के सदस्यों ने इसकी मुहिम छेड़ दी है। शनिवार को एरोड्रम सर्किल व रेलवे पुलिया के पास कंसुआधाम रोड के बोर्ड लगाए गए। इसी प्रकार चौराहे पर भरत सर्किल का बोर्ड लगाया गया। क्षेत्रवासियों ने तालियों के साथ इसका स्वागत किया। उन्होंने कहा कि पहली बार कंसुआधाम को अंधियारे से बाहर निकालने का कार्य हो रहा है। इसमें कंसुआधाम का पूरा सहयोग है।


समिति के सदस्य क्रांति तिवारी के नेतृत्व में शनिवार को दोपहर बाद कंसुआ क्षेत्र में पहुंचे। उन्होंने वहां चौराहे पर पहुंचकर भरत चौराहा के नाम का बोर्ड वहां लगाया। इस दौरान आसपास के नागरिक बड़ी संख्या में मौजूद थे। उन्होंने कहा कि अब इस चौराहे को भरत चौराहे के नाम से ही जाना जाएगा। इसके बाद सदस्यों ने रेलवे पुलिया के पास तथा एरोड्रम सर्किल के पास कंसुआधाम रोड को इंगित करने वाले बोर्ड लगाए। अब डीसीएम रोड का नाम कंसुआधाम रोड के नाम से ही जाना जाएगा।

धारीवाल के पास पहुंचे

समिति के सदस्यों ने शाम को नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल को भी ज्ञापन दिया। उन्होंने धारीवाल को बताया कि क्षेत्रवासियों के साथ ही आमजन की भी इच्छा है कि डीसीएम रोड का नाम कंसुआ रोड व चौराहे का नाम भरत चौराहा रखा जाए। उन्होंने इस बारे में विस्तार से जानकारी भी ली। धारीवाल ने इस संबंध में यूआईटी अधिकारियों से चर्चा करने का आश्वासन दिया।

इस कार्य में सहयोग करने वालों में जुगल शर्मा, राहुल मिश्रा, दिनेश जोशी धर्मेंद्र शर्मा, दिलीप गुर्जर, मनीष एडवोकेट, रिंकू गुर्जर, बद्री मेघवाल, मुकेश भटनागर आदि मौजूद थे। उधर, कंसुआधाम पर गुप्त शिवलिंग वाले कमरे की सफाई का कार्य जारी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग 10 मार्च तक इस कार्य को पूरा करने की तैयारी में जुटा हुआ है, ताकि 11 व 12 को यहां लोगों को दर्शन करने में किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो।

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