सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोयला खदानों की नीलामी की प्रक्रिया न अपनाकर सरकारी खजाने को करीब 1.86 करोड़ रुपये का 'चूना' लगाया गया है। लेकिन सरकार का तर्क है कि जब कुछ खदानों को छोड़कर किसी से भी कोयला निकाला ही नहीं गया तो घोटाला कैसे हो गया। इस पर विपक्ष का तर्क है कि जिन कंपनियों को कोयला खदानें आवंटित की गईं, उनका बाज़ार मूल्य रातों रात कई गुना बढ़ गया, जिसके चलते ऐसी कंपनियों ने मोटा मुनाफा कमाया।
यूपीए के कार्यकाल के दौरान 2006 से लेकर 2010 के बीच 142 कोयला खदानें आवंटित की गईं। लेकिन अभी तक 80 फीसदी से भी अधिक आवंटियों ने अब तक अपने ब्लॉकों से कोयला उत्पादन शुरू नहीं किया है। एक तरफ तो सरकार ने इन ब्लॉकों के आवंटन में जबर्दस्त तेजी दिखाई और दूसरी तरफ उसने यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ खास नहीं किया कि आवंटन कराने वाली कंपनियां कोयला उत्पादन करना शुरू कर दें। तमाम विवादों के बाद अब सरकार ने एक कमेटी बनाई है जो यह देखेगी कि कितने आवंटी ऐसे हैं, जिन्होंने जान-बूझकर यह देरी की और कितने आवंटी ऐसे हैं जो जमीन अधिग्रहण या अपनी खनन योजना के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति न मिलने की वाजिब वजहों के चलते काम शुरू नहीं कर सके। गौरतलब है कि कोल ब्लॉक आवंटन के पीछे सरकार का सबसे बड़ा तर्क यही था कि इससे घरेलू कोयला उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी होगी।
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