पूर्व राजस्व मंत्री चौधरी कुंभाराम आर्य पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह के बहुत करीबी थे। लेकिन कुंभाराम आर्य के अनुसार ‘एक बार चौधरी चरणसिंह को देश का प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला था पर सत्य, न्याय और नैतिकता ने अवसर गंवा दिया।’आर्य ने अपने स्मृति ग्रन्थ संस्मरण में लिखा है- चौधरी साहब को प्रधानमंत्री बनने का अवसर पार्टी के बहुमत ने नहीं दिया था, अन्य दलों के समर्थन से यह अवसर मिला था। लोकसभा में उस समय सबसे बड़ा राजनीतिक दल, इंदिरा कांग्रेस था।
चौधरी साहब के प्रधानमंत्री बनने के बाद श्रीमती गांधी की ओर से उन्हें यह संदेश गया कि वे स्वागत के लिए आ रही हैं। यह संदेश मिलते ही चौधरी चरण सिंह की भौहें चढ़ गईं और बोले ‘देश का प्रधानमंत्री मुलजिमों से स्वागत कराएगा? कह दो उसको यहां न आवे’ संदेशवाहक चुपचाप चला गया। इस पर इंदिरा जी ने चौधरी कुंभाराम को बुलवाया और कहा ‘मैं चौधरी साब को अपना चाचा मानती हूं।
वे प्रधानमंत्री रहे, मेरा समर्थन रहेगा पर चौधरी साब को इतनी ईष्र्या और डाह नहीं होना चाहिए। चौधरी साब को मेरा घर आना पसंद नहीं तो टेलीफोन पर स्वागत स्वीकार कर लें।’ कुंभाराम आर्य कहते हैं -मैंने इस बारे में चौधरी साब से अकेले बातचीत करनी चाही, लेकिन चौधरी साब ना कर गए। इस पर वहां बैठे महानुभावों ने सोचा कि इन्हें अकेले में बात करने का अवसर देना चाहिए, सो वे बाहर चले गए। मेरे बोलने से पहले ही चौधरी साब बोले ‘सब को उठा दिया इससे क्या हुआ? तुम जो कहोगे वह सब मैं इनको कह दूंगा।
बोलो क्या कहना चाहते हो।’ मैंने इंदिरा जी की पूरी व्यथा कथा कह दी। इस पर चौधरी साब कहने लगे-‘चौधरी साब (कुंभाराम), जीवनभर की ईमानदारी प्रधानमंत्री पद के लिए बर्बाद करने के लिए चरणसिंह तैयार नहीं है और बोलो क्या कहना है?’ मैंने निवेदन किया -‘प्रधानमंत्री पद पर चौधरी चरण सिंह नहीं बैठा, देश की 85% जनता का प्रतिनिधि बैठा है। आपको उस रूप में सोचना चाहिए। उन्होंने बाहर गए लोगों को भी बुला लिया और उन्हें मेरी बात बताई, उन लोगों ने भी मेरी राय पर सहमति प्रकट की।
लेकिन, चौधरी चरण सिंह बिगड़े और बोले ‘चोरों के साथ मिलकर राज नहीं किया जा सकता, चोरी की जा सकती है।’ यह बात इंदिरा जी तक पहुंच गई। इंदिरा जी ने मुझे (कुंभाराम) बुलाया और कहा ‘मैं पब्लिकली अपना समर्थन समाप्त करने की घोषणा करती हूं। देखूं कैसे चौधरी साब प्रधानमंत्री रहते हैं? मैंने (आर्य) इंदिरा जी को धर्य से काम लेने की सलाह दी।’ इंदिरा जी ने मुझे कहा ‘चौधरी साब को मना लो। मैं रुक जाती हूं।’ बाद में इंदिरा जी ने समर्थन नहीं देने की घोषणा कर दी।
चौधरी साहब के प्रधानमंत्री बनने के बाद श्रीमती गांधी की ओर से उन्हें यह संदेश गया कि वे स्वागत के लिए आ रही हैं। यह संदेश मिलते ही चौधरी चरण सिंह की भौहें चढ़ गईं और बोले ‘देश का प्रधानमंत्री मुलजिमों से स्वागत कराएगा? कह दो उसको यहां न आवे’ संदेशवाहक चुपचाप चला गया। इस पर इंदिरा जी ने चौधरी कुंभाराम को बुलवाया और कहा ‘मैं चौधरी साब को अपना चाचा मानती हूं।
वे प्रधानमंत्री रहे, मेरा समर्थन रहेगा पर चौधरी साब को इतनी ईष्र्या और डाह नहीं होना चाहिए। चौधरी साब को मेरा घर आना पसंद नहीं तो टेलीफोन पर स्वागत स्वीकार कर लें।’ कुंभाराम आर्य कहते हैं -मैंने इस बारे में चौधरी साब से अकेले बातचीत करनी चाही, लेकिन चौधरी साब ना कर गए। इस पर वहां बैठे महानुभावों ने सोचा कि इन्हें अकेले में बात करने का अवसर देना चाहिए, सो वे बाहर चले गए। मेरे बोलने से पहले ही चौधरी साब बोले ‘सब को उठा दिया इससे क्या हुआ? तुम जो कहोगे वह सब मैं इनको कह दूंगा।
बोलो क्या कहना चाहते हो।’ मैंने इंदिरा जी की पूरी व्यथा कथा कह दी। इस पर चौधरी साब कहने लगे-‘चौधरी साब (कुंभाराम), जीवनभर की ईमानदारी प्रधानमंत्री पद के लिए बर्बाद करने के लिए चरणसिंह तैयार नहीं है और बोलो क्या कहना है?’ मैंने निवेदन किया -‘प्रधानमंत्री पद पर चौधरी चरण सिंह नहीं बैठा, देश की 85% जनता का प्रतिनिधि बैठा है। आपको उस रूप में सोचना चाहिए। उन्होंने बाहर गए लोगों को भी बुला लिया और उन्हें मेरी बात बताई, उन लोगों ने भी मेरी राय पर सहमति प्रकट की।
लेकिन, चौधरी चरण सिंह बिगड़े और बोले ‘चोरों के साथ मिलकर राज नहीं किया जा सकता, चोरी की जा सकती है।’ यह बात इंदिरा जी तक पहुंच गई। इंदिरा जी ने मुझे (कुंभाराम) बुलाया और कहा ‘मैं पब्लिकली अपना समर्थन समाप्त करने की घोषणा करती हूं। देखूं कैसे चौधरी साब प्रधानमंत्री रहते हैं? मैंने (आर्य) इंदिरा जी को धर्य से काम लेने की सलाह दी।’ इंदिरा जी ने मुझे कहा ‘चौधरी साब को मना लो। मैं रुक जाती हूं।’ बाद में इंदिरा जी ने समर्थन नहीं देने की घोषणा कर दी।
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