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12 अगस्त 2012

पिता की अर्थी को कांधा, मुखाग्नि के बाद बेटी ने लिखी

कोटा/हिंडौली (बूंदी).एक आईआईटीयन बेटी ने पारिवारिक विरोध और जाति-बिरादरी की परवाह न करते हुए हिम्मत दिखाकर सामाजिक बदलाव की नई इबारत लिख दी। बूंदी जिले के छोटे से गांव बीचड़ी के दिवंगत रामसिंह कसाणा की बड़ी बेटी डॉ. त्रिशला सिंह (36) ने रविवार को उनके बारहवें की रस्म निभाते हुए स्वयं पगड़ी पहनी। रामसिंह के बेटा नहीं है, सिर्फ तीन बेटियां हैं।

अब तक बेटियां केवल पिता की चिता को मुखाग्नि ही देती रही हैं। परंपरा रही है कि पिता की मौत के बाद पुत्र या पुत्र न होने पर भतीजा ही पगड़ी पहनता है। रामसिंह की पत्नी अमृता सिंह ने प्रशासन की मौजूदगी में बेटी त्रिशला को पगड़ी पहनाकर दस्तूर पूरा किया। आईआईटी कानपुर से पीएचडी डॉ. त्रिशला इस समय बेंगलुरू में बहुराष्ट्रीय कंपनी फ्रास्ट एंड सुलेवन में एशिया हेड हैं।

मृत्युभोज की बजाय गर्ल्स स्कूल

इस जागरूक परिवार ने मृत्युभोज की जगह गांव में बेटियों के लिए अच्छा स्कूल खोलने का फैसला किया है। उन्होंने पटवारी से जगह के बारे में जानकारी भी ली। हिंडौली से 13 किमी दूर 40 घरों के इस गांव में अभी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं।

किसी को तो पहल करनी थी

देश की बेटियां नासा जा सकती हैं तो पिता की पगड़ी क्यों नहीं पहन सकती। हमें पता है कुछ लोग नाराज हैं, लेकिन किसी को तो पहल करनी थी।

—अमृता सिंह, मां

बेटियां भी बेटों के समान हैं

हमारे कानून ने बेटे-बेटियों को समान दर्जा दिया है। फिर रस्म अदायगी में भेदभाव क्यों। पढ़े-लिखे वर्ग को इन्हें तोड़ने की हिम्मत दिखानी होगी।

—त्रिशला सिंह, बेटी

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