नाथद्वारा व गुजरात सहित देशभर से लोग यहां आते हैं, लेकिन व्यापक प्रचार-प्रसार के अभाव में हाड़ौती के लोगों को यहां की जानकारी ही नहीं है। पर्यटन विभाग, नगर निगम अथवा यूआईटी ने भी इस स्थान को टूरिज्म की दृष्टि से कभी विकसित करने का प्रयास नहीं किया। कोटा समेत देश में 5 और स्थानों पर इस तरह की चरणचौकी स्थापित हैं।
औरंगजेब के शासनकाल के दौरान वर्ष 1724 में श्रीनाथजी अपने 7 स्वरूपों को लेकर पूरे लाव लश्कर के साथ बृज से नाथद्वारा पधारे थे। उस समय बूंदी के राजा अनिरुद्ध सिंह ने भगवान को मोतीपुरा गांव के पास इस स्थान पर चातुर्मास करने और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने की बात की।
तब श्रीनाथजी ने यहां चातुर्मास किया। उस समय उनकी सुरक्षा के लिए 5 हजार सैनिक यहां लगाए थे। इसके अलावा उनके साथ आया पूरा लाव लश्कर अलग से था। चार माह बाद जब श्रीनाथजी यहां से किशनगढ़ ऊंची गेल के लिए रवाना हुए तब उनका पीछा करता हुआ औरंगजेब मोतीपुरा तक पहुंच गया। यहां औरंगजेब के साथ जमकर युद्ध हुआ। जिसमें हजारों सैनिक शहीद हुए।
सालों से यहां सेवा कर रहे सेवक मदनलाल बताते हैं कि बृज से नाथद्वारा के बीच 6 स्थानों पर श्रीनाथजी ने चातुर्मास किया था। ये सभी स्थान चरण चौकी के रूप में विख्यात हुए। कोटा में यह जगह कृष्ण विलास के रूप में जानी गई। यहां छपे हुए भगवान के चरणों के दर्शन के लिए कोटा संभाग के लोग तो कम आते हैं, लेकिन नाथद्वारा व गुजरात से काफी संख्या में आते हैं। यहां पर पीने के पानी, आने-जाने का सुलभ साधन, रोड लाइट और सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता नहीं होने के कारण दर्शनार्थियों को परेशानी आती है।
सवा लाख रुपए प्रतिदिन आता था खर्च
300 साल पहले श्रीनाथ जी की सेवा, लाव लश्कर और सैनिकों पर बूंदी राजा की ओर से प्रतिदिन 1।25 लाख रुपए का खर्च आयेगा
नाथद्वारा बोर्ड के अधीन
पहले सेवापूजा पास स्थित प्रहलादपुरा गांव की एक महिला करती थी। फिलहाल नाथद्वारा बोर्ड द्वारा यहां की व्यवस्था की जा रही है। देश में इस प्रकार की चरणचौकी आगरा छत्ता बाजार, दंडोतीधार मुरैना मध्यप्रदेश, कोटा में कृष्ण विलास मोतीपुरा, किशनगढ़ ऊंची गेल, चौपासनी जोधपुर व श्रीनाथ द्वारा कृष्ण भंडार में भी हैं।
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