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13 अप्रैल 2012

.मुफ्ती शमीम अशरफ हिन्दुस्तान के सबसे कम उम्र के पहले मुफ्ती हैं जो अपने कार्य को बा खूबी अंजाम दे रहे है ................


जी हाँ जनाब आप हैं मुफ्ती शमीम अशरफ ..कोटा में दारुल उलूम रिजविया विज्ञाननगर के संचालक भी आप ही है ...उक्त दारुल उलूम में मुफ्ती शमीम अशरफ के नेतृत्व और प्रबंधन में बच्चों को धार्मिक और दुनियावी शिक्षा दी जाती है ......कोटा विज्ञाननगर छतरपुरा स्थित यह दारुल उलूम दिन बा दिन अपनी लोकप्रियता के सोपान अपर चढ़ता जा रहा है ..इस दारुल उलूम में मोलवी ..आलिम ..फ़ाज़िल ..कारी ...के कोर्स तो होते ही हैं साथ ही यहाँ दुनियावी शिक्षा में दसवीं से बी ऐ बी एस सी की भी तालीम दी जाती है .....दारुल उलूम में होसल सुविधा भी है ...यहाँ मोलाना आज़ाद फौन्डेशन सहित कई दुसरे कोर्स जेसे अरबी ..उर्दू ..फारसी लर्निंग कोर्स भी चलाए जा रहे हैं ....मुफ्ती शमीम अशरफ ने अपनी यह तरबियत इनके वालिद मरहूम मुफ्ती अख्तर हुसेन से प्राप्त की थी ..मरहूम मुफ्ती अख्तर हुसेन ने कथुन में रहकर दारुल उलूम संचालित कर कोम की दिनी और दुनियावी खिदमत की फिर कोटा आकर उन्होंने छतरपुरा विज्ञाननगर में दारुल उलूम रिजविया का पोधा लगाया जिसे उनके विसाल के बाद उनके पुत्र मुफ्ती शमीम अशरफ ने अपने सामजिक सरोकार और कुशल प्रबंधन से सींचा और आज यह पोधा एक वट वृक्ष बन गया है जिसकी छावों में हजारों लोग ठहरते हैं आराम करते है और ठंडी हवा खाकर लोगों में प्यार ..विश्वास.. भाईचारा.. सद्भावना ..और ज्ञान ...खासकर इस्लामिक ज्ञान ..वोह भी सुन्नी इदारे ..का जहां सिर्फ प्यार ही प्यार ..मोहबबत की ही शिक्षा दी जाती है और इस शिक्षा को यह बांटते जाते है ................मुफ्ती शमीम अशरफ सामाजिक कार्यों से भी जुड़े है और कई बार मजहबी मसलों पर इनकी राय समाज के लियें महत्वपूर्ण साबित होती है .....मुफ्ती शमीम अशरफ ने मदरसों का दर्द देखा है ..मदरसों का दर्द जाना है और मदरसों का आधुनिकीकरण केसे किया जाए इसकी उनके पास एक कार्य योजना है जिसे लेकर यह देश भर में प्रयासरत है और एक सपना सजोकर बेठे है के हर मदरसा मोडर्न हो और इसके लियें मुफ्ती शमीम अशरफ ने अपने खुद के दारुल उलूम को कम्प्यूटर शिक्षा से जोड़ा है यहाँ उन्होंने कम्यूटर लर्निंग कोर्स चालु कर आधुनिक शिक्षा की शुरुआत भी की है जो कई सालों से लगातार जारी है ..मुफ्ती शमीम अशरफ का संकल्प है के मदरसों में पढाने वाले शिक्षकों कोर मुदार्रिसों मोलानाओं को उनका वाजिब हक सरकार दे ..केंद्र और राज्य सरकारे मदरसों में मज़हबी शिक्षा देने वाले मोलानाओं को मानदेय दें जबकि मस्जिदों में इमामों को भी उनका सम्मान बराबरी का हक और इन्साफ के साथ उचित मान दे मिले ताकि वोह लोग भी अपने परिवार का पालन पोषण बेहतर तरीके से कर सकें ..अपने इस सपने को साकार करने के लियें मुफ्ती शमीम अशरफ ने केंद्र और राज्य सरकार में संघर्ष का बिगुल बजा रखा है और इंशा अल्लाह इनकी कार्ययोजना अब कामयाबी की तरफ है ....मुफ्ती शमीम अशरफ हिन्दुस्तान के सबसे कम उम्र के पहले मुफ्ती हैं जो अपने कार्य को बा खूबी अंजाम दे रहे है .................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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