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07 अप्रैल 2012

क्या हुआ रावण के मरने के बाद लंका का हाल?


...रामजी ने उसकी माया को नष्ट कर दिया। श्रीरामजी ने बाणों के समूह छोड़े, जिनसे रावण के हाथ और सिर पृथ्वी पर कटकटकर गिर रहे हैं। जब रावण और अधिक विकराल हो गया। तब विभीषण ने आकर रामजी से कहा रावण के नाभिकुंड में अमृत का निवास है। रामजी ने विकराल रूप लेकर हाथ में बाण लिए। चारों और अपशकुन होने लगे अब आगे...

मूर्तियां रोने लगी, आकाश से वज्रपात होने लगे, बहुत तेज हवाएं चलने लगी, पृथ्वी हिलने लगी, बाल, रक्त और धूल की वर्षा होने लगी। रामजी ने कई बाण छोड़े। एक बाण ने रावण की नाभि के अमृतकुंड को सोख लिया। रावण के गिरते ही पृथ्वी हिल गई।

समुद्र, नदियां और दिशाएं क्षुब्ध हो गई। रावण का तेज रामजी में समा गया। चारों और रामजी की जय-जयकार होने लगी। रामजी के सिर पर जटाओं का मुकुट है। जिसमें बीच में फूल शोभा दे रहा है। उनके शरीर पर रक्त की छोटी-छोटी बूंदे बहुत सुंदर लग रही हैं। इधर पति के मृत शरीर को देखकर मंदोदरी बेहोश हो गई। अपने पति की दशा देखकर वह रोने लगी। रावण की ऐसी स्थिति देखकर विभीषण का भी मन भारी हो गया।

रामजी ने लक्ष्मणजी से कहा-विभीषण को जाकर धैर्य बंधाओ। उन्होंने विभीषण को समझाया कि सब शोक त्यागकर रावण की अंत्येष्टी क्रिया करो। विभीषण ने विधि-पूर्वक अंत्येष्टी क्रिया की। सब क्रिया-कर्म करने के बाद विभीषण ने आकर सिर नवाया। तब रामजी के छोटे भाइै लक्ष्मणजी को बुलाया और बोले सब लोग मिलकर विभीषण का राजतिलक करो। रामजी विभीषण से बोले- पिताजी को दिए वचन के कारण में नगर में नहीं आ सकता हूं लेकिन अपने ही समान छोटे भाई को भेज रहा हूं।

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