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13 अप्रैल 2012

सुप्रीम कोर्ट से तीस्ता को राहत, गुजरात सरकार को फटकार

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को राहत दी और साथ ही गुजरात सरकार को एक मामले में फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता को राहत देते हुए शुक्रवार को उनके खिलाफ 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित एक मामले में सभी कार्यवाहियों पर रोक लगा दी। यह मामला राज्य के लूनावाड़ा में दफन अज्ञात शवों को खोद कर निकाले जाने से संबंधित है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वास्तव में मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए मुकदमा गुजरात सरकार के खिलाफ चलाया जाना चाहिए। जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की पीठ ने गुजरात सरकार के वकील से कहा, 'आप एफआईआर पढ़िए। आरोपी दूसरा पक्ष (राज्य सरकार) होना चाहिए था। राज्य के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघनों का मुकदमा चलाया जाना चाहिए था।' कोर्ट ने कहा, 'हम बहुत असंतुष्ट हैं। मामला प्रशासन के खिलाफ बनता है। अगर समग्र दृष्टिकोण से देखा जाए, तो एफआईआर प्रशासन के खिलाफ होना चाहिए था।' इस मामले में गुजरात सरकार ने तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराया था। सरकार ने आरोप लगाया था कि 2002 के गुजरात दंगों में मारे गए लोगों के शव सीतलवाड़ के कहने पर कब्र से खोदे गए थे।

सीतलवाड़ के खिलाफ पूरा मामला एक आदमी रईस खान के बयान पर आधारित था। खान, सीतलवाड़ की संस्था, कमिटी फॉर जस्टिस ऐंड पीस (सीजेपी) में काम करते थे। कोर्ट ने कहा कि तीस्ता के खिलाफ पूरा मामला गलत इरादे से बनाया गया है। पीठ ने कहा, 'यह गलत इरादे से बनाया हुआ मामला है।' सामूहिक कब्र खोदने का मामला 27 दिसम्बर, 2005 को घटी उस घटना से संबंधित है, जिसके तहत सीजेपी के तत्कालीन स्थानीय समन्वयक, रईस खान पठान के नेतृत्व में 6 लोगों ने गुजरात में पंचमहाल जिले के लूनावाड़ा में पनाम नदी की तलहटी के पास 28 अज्ञात शवों की कब्र खोद डाली थी। कब्र खोदने वालों ने दावा किया था कि वे शव पंधरवाड़ा नरसंहार के लापता पीड़ितों के थे और वे उनके रिश्तेदार थे।

शवों की पहचान के लिए उनके डीएनए परीक्षण हुए थे और उसके बाद कब्र खोदने वालों ने इस्लामिक रीति-रिवाज के मुताबिक, शवों को वापस दफना दिया था। उस समय पठान ने कहा था कि उन्होंने सीतलवाड़ के कहने पर शवों को खोदकर निकाला था। पंचमहाल जिले के पंधरवाड़ा के रहने वाले कुल 32 लोगों को पहली मार्च, 2002 को, राज्यभर में भड़के साम्प्रदायिक दंगों के दौरान मार डाला गया था। लेकिन इनमें से 28 शवों के बारे में पता नहीं चल पाया था।

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