इनसे पूंछो इन्हें बेगुनाहों को मारने का हक किसने दिया .......................
नई दिल्ली. हाल में अमेरिका ने पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित संगठन जमात-उद-दावा के प्रमुख और मुंबई आतंकी हमले के आरोपी हाफिज सईद पर 50 करोड़ रुपये के इनाम की घोषणा की है। आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का संस्थापक सईद भारत की मोस्ट वांटेड अपराधियों की सूची में शामिल है। मुंबई में 26/11 को हुए हमले में 166 लोग मारे गए थे और सैकड़ों अन्य घायल हुए थे। उस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से सईद को सौंपने को कहा था। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी आज भारत के एक दिन के दौरे पर हैं। ऐसे में जरदारी के दौरे पर हाफिज सईद का मसला पूरी तरह छाए रहने की उम्मीद है।
सईद ने कराची से प्रकाशित होने वाले उर्दू अखबार Roznama Ummat को दिए इंटरव्यू में हाफिज ने अपनी कहानी खुद अपनी जुबानी कही। सईद ने अपने शुरुआती जीवन से लेकर लश्कर और जमात उद दावा के गठन तक की कहानी बयां की। सईद के पूर्वजों का ताल्लुक हरियाणा के गुज्जर परिवार से था। सईद के पिता कमाल-उद-दीन एक साधारण किसान थे। विभाजन के बाद हाफिज के पूर्वज हरियाणा से माइग्रेट कर पाकिस्तान जा बसे।
सईद का दावा है कि बंटवारे के बाद जब उसके परिवार के लोग पाकिस्तान पहुंचे तो उनमें से 36 लोगों को मार दिया गया था। सईद ने अपने पिता, मां और परिवार के अन्य सदस्यों से बंटवारे के वक्त हुए हादसों की कहानी सुनी। उसने कहा कि उसके परिवार के लोगों के साथ भारत में बहुत जुल्म हुआ और उन्हें हरियाणा स्थित पैतृक घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया।
सईद का कहना है कि जब उसके परिवार के लोगों ने हरियाणा छोड़कर पाकिस्तान का रुख किया तो कारवां में करीब 800 लोग थे। इनमें अधिकतर सईद के परिवार के ही थे। उनका सफर ट्रेन से शुरू हुआ लेकिन पता चला कि सीमा पर हिंसा पर उतारू लोग ट्रेनों को रोककर उसमें बैठे मुसलमानों का कत्ले-आम कर रहे हैं, तो इन्होंने पैदल ही सफर करना मुनासिब समझा। मार्च 1948 में यह कारवां पाकिस्तान की सरहद पर पहुंचा।
सईद के मुताबिक उसकी मां ने उसे बताया कि जब यह कारवां फैसलाबाद के जरांवाला तहसील पहुंचा तो उन्होंने सईद को जन्म दिया। यदि वह दो-तीन महीने पैदा हुआ होता तो उसे भी परिवार के अन्य सदस्यों की तरह मार दिया गया होता। 1947 के दंगों में हरियाणा स्थित सईद के पुरखों की जमीन छीन ली गई। माइग्रेशन के बाद सईद का परिवार पाकिस्तान के सरगोधा में शिफ्ट हुआ। वहां सईद के परिवार के पास एक इंच भी जमीन नहीं थी। यहां तक कि रहने के लिए एक झोंपड़ी भी नहीं थी।
भाई वकील साहब, ये आप इनका इतिहास बता रहे हैं या महिमामंडन कर रहे हैं? या फ़िर इनके साथ हुये अन्याय को बताकर इनकी हरकतों को जायज ठहरा रहे हैं? ध्यान दें कि ये दंगे दोनों तरफ़ हुये थे और अगर initiation और intensity की बात करें तो उधर वाले बहुत आगे(जिसे नीचे कहना चाहिये) थे, तो उस तर्ज पर तो जाने कितने हाफ़िज सईद इधर मान्यता प्राप्त हो चुके होते।
जवाब देंहटाएंबहुत समय के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ, सोच रहा हूँ कि वही अख्तर खान हैं पुराने वाले या बदले हुये।