भगवान शंकर ने जगत कल्याण के लिए कई अवतार लिए। उन्हीं में से एक अवतार है अर्द्ध नारीश्वर का। इस अवतार में भगवान शंकर का आधा शरीर स्त्री का तथा आधा पुरुष का है। भगवान के इस रूप के पीछे वैज्ञानिक कारण भी निहित है।
जीव विज्ञान के अनुसार मनुष्य में 46 गुणसूत्र पाए जाते हैं। गर्भाधान के समय पुरुष के आधे क्रोमोजोम्स(23) तथा स्त्री के आधे क्रोमोजोम्स(23) मिलकर संतान की उत्पत्ति करते हैं। इन 23-23 क्रोमोजोम्स के मिलन से ही संतान उत्पन्न होती है। अर्थात मनुष्य के शरीर में आधा हिस्सा पुरुष(पिता) तथा आधा स्त्री(माता) का होता है।
हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य स्त्री के बिना पूर्ण नहीं माना जाता क्योंकि वह उसका आधा अंग है। अकेला पुरुष अधूरा है, स्त्री यानी पत्नी के बिना वह संपूर्ण नहीं हो सकता। इसी कारण स्त्री को अर्द्धांगी कहा जाता है। यही शिव के अर्द्ध नारीश्वर स्वरूप का मूल सार है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
13 फ़रवरी 2012
महाशिवरात्रि: जानिए, क्या है शिव के अर्द्ध नारीश्वर स्वरूप का रहस्य
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