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21 फ़रवरी 2012

रामजी ने रामेश्चर ज्योर्तिलिंग क्यों स्थापित की?


ममता में फंसे हुए मनुष्य को ज्ञान की कथा सुनाने का, अत्यंत लोभी से वैराग्य का वर्णन, क्रोधी से शम शान्ति की बात और कामी को भगवान की कथा सुनाने का, कोई फल नहीं होता है। ऐसा कहकर रघुनाथजी धनुष चढ़ाया। यह बात लक्ष्मणजी के मन को बहुत अच्छा लगी अब आगे....


समुद्र ने भयभीत होकर रामजी के चरण पकड़ लिए और कहा- मेरे सब अवगुण क्षमा कीजिए। समुद्र की ऐसी बात सुनकर कृपालु श्रीरामजी ने मुस्कुराकर कहा- जिस तरह वानर सेना पार उतर जाए वह उपाय बताओ। समुद्र ने कहा नील और नल दो वानर भाई हैं। उन्होंने आशीर्वाद पाया था कि उनके स्पर्श कर लेने से भारी से भारी पहाड़ भी नदी पर तैर जाएगा। समुद्र की बात सुनकर रामजी बोले मंत्रियों को बुलाकर ऐसा कहा- अब विलंब किसलिए हो रहा है। जल्दी सेतु तैयार करो, जिसमें सेना उतरे।

तब जांबवान ने नल-नील दोनों भाइयों को बुलाकर उन्हें सारी कथा सुनाई। फिर सुग्रीव ने वानरों का समुह बुला लिया और बोले आप सब लोग मेरी विनती सुनिए सब भालू और वानर एक काम कीजिए। पर्वतों के समुह को उखाड़ लाइए। तब सभी वानर बहुत ऊंचे वृक्षों और पर्वतों को उठा लाते और लाकर नल नील को दे देते है।

रामजी बोले में यहां शिवजी की स्थापना करूंगा। श्रीरामजी की बात सुनकर सुग्रीव ने बहुत सारे दूत भेजे और मुनियों को बुलवाकर शिवलिंग की स्थापना क रके विधिपूर्वक उसका पूजन किया।रामजी बोले- जो शिवद्रोह करता है और मेरा भक्त कहलाता है, वह स्वप्र में भी मुझें नहीं पाता। शंकरजी से विमुख होकर जो मेरी भक्ति चाहता है, वह नरकगामी, मुर्ख और अल्पबुद्धि है। जो मनुष्य रामेश्चरजी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएंगे। जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ावेगा, वह मनुष्य मुक्ति पावेगा।

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