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21 फ़रवरी 2012

गुरु नानक की जिंदगी का यह सच नहीं होगा आपको पता!


पंजाब की भूमि वीर योद्धाओं के शौर्य गाथाओं और मानवता के लिए सर्वस्व त्याग देने वाले लोगों की कहानियों से भरी है। इसी प्रांत में सिख धर्म का उदय हुआ और यह देश- दुनिया तक फैला। इन कहानियों के स्वर्णभंडार से हम आपके लिए कुछ ऐसी कहानियां लेकर आए हैं जो सिख धर्म गुरुओं से संबंधित है। पेश है गुरु नानक के जीवन की कुछ बातें-
नानक एक असाधारण रूप से विकसित शक्तियों वाले बालक थे। बारह वर्ष की आयु में उनका विवाह बटाला के मूलचंद चोना की बेटी सुलखनी से हो गया। नानक की उम्र उन्नीस साल की थी, जब उनकी पत्नी उनके साथ रहने आ गई। कुछ समय के लिए तो वह उनका ध्यान अपनी तरफ करने में कामयाब हो गई और उसने दो पुत्रों को जन्म दिया, श्रीचंद को वर्ष 1494 में और लखमीदास को तीन साल बाद। उनकी शायद कोई बेटी या बेटियां भी हुईं, जो बचपन में ही मर गईं।
उसके बाद नानक का मन पुन: आध्यात्मिक समस्याओं की ओर मुड़ गया और फिर वे दर-दर भटकते साधुओं का साथ खोजने लगे। उनके पिता ने उन्हें अपने पशुओं की देखभाल करने में लगाने और उनके लिए व्यवसाय-धंधा खोलने की बड़ी कोशिश की, लेकिन कुछ भी काम न आया। उनकी बहन उन्हें अपने घर सुल्तानपुर ले आई और अपने पति के प्रभाव से उनकी नौकरी बतौर खजांची नवाब दौलत खान लोदी के यहां लगवा दी, जो कि दिल्ली के सुल्तान के कोई दूर के रिश्तेदार थे। यद्यपि नानक ने बेमन से ही यह नौकरी करना स्वीकार किया, लेकिन अपना फर्ज उन्होंने बाकायदा भली-भांति निभाया और अपने मालिकों का दिल जीत लिया।
सुल्तानपुर में एक मुस्लिम भांड मरदाना नानक के साथ हो लिया और दोनों मिलकर शहर में सबद गाने का आयोजन करने लगे। जन्मसाखी में सुल्तानपुर में बिताए उनके जीवन का ब्यौरा है, हर रात वे गुरुबानी गाते थे, जो भी आता, वे उसे भोजन कराते, सूर्योदय से सवा घंटे पहले उठ वे नदी में नहाने जाते और दिन निकलने तक दरबार में जाकर अपने काम में जुट जाते।
नदी पर सुबह-सुबह ऐसे ही एक स्नान के दौरान, नानक को अपना प्रथम रहस्यवादी अनुभव हुआ। जन्मसाखी में इसे ईश्वर के साथ आध्यात्मिक संवाद कहा गया है। ईश्वर ने उन्हें पीने के लिए अमृत का भरा प्याला दिया और धर्मोपदेश देने का जिम्मा सौंपते हुए कहा:
नानक, मैं तुम्हारे साथ हूं। तुम्हारे जरिए मेरा नाम बढ़ेगा। जो भी तुम्हारा अनुसरण करेगा, मैं उसकी रक्षा करूंगा। प्रार्थना करने के लिए दुनिया में जाओ और लोगों को प्रार्थना का ढंग सिखाओ। दुनिया के ढंग देखकर घबराना नहीं। अपने जीवन को नाम की स्तुति में, दान, स्नान, सेवा और सिमरन में समर्पित कर दो। नानक, मैं तुम्हें अपना वायदा देता हूं। इसे अपने जीवन का लक्ष्य बन जाने दो।
रहस्यमय वाणी ने फिर कहा:
नानक, जिसे तुम आशीष दोगे, वह मेरे द्वारा आशीषा जाएगा, जिस पर तुम अनुग्रह करोगे, वह मेरा अनुग्रह प्राप्त करेगा। मैं परमात्मा हूं, परम- सर्जक। तुम गुरु हो, परमात्मा के परम गुरु।
कहते हैं नानक को ईश्वर ने अपने हाथों से दिव्य सिरोपा दिया। नानक तीन दिन और तीन रातों तक गुम रहे और यह समझ लिया गया था कि वे नदी में डूब गए। वे चौथे दिन पुन: प्रकट हुए। जन्मसाखी में इस नाटकीय वापसी का वर्णन इस प्रकार है:
लोग बोले, मित्रों, ये नदी में खो गए थे, कहां से पुन: प्रकट हुए हैं? नानक घर लौटे और जो भी उनके पास था, सब लोगों में बांट दिया। उनके तन पर केवल उनकी लंगोटी बची थी, बाकी कुछ नहीं। उनके गिर्द भीड़ जुटनी शुरू हो गई। खान भी आया और पूछने लगा, नानक, तुमको हुआ क्या है? नानक मूक बने रहे। जवाब लोगों ने दिया, यह नदी में रहा है और इसका दिमाग खराब हो गया है। खान बोला, मित्रो, यह तो बड़ी परेशानी की बात है, और दुखी होकर वापस चला गया।
नानक फकीरों के साथ जा मिले। उनके साथ भाट मरदाना भी गया। एक दिन बीत गया। अगले दिन वे उठे और बोले, कोई हिंदू नहीं है, न ही कोई मुसलमान। इसके बाद तो जब भी बोलते, यही करते, कोई न हिंदू है, न ही कोई मुसलमान है।
यह घटना संभवत: सन् 1499 में घटी, जब नानक अपनी उम्र के तीसवें वर्ष में थे। यह उनके जीवन के प्रथम अध्याय को चिह्न्ति करता है-सच की खोज हो चुकी थी, वे दुनिया को इसकी घोषणा करने के लिए तैयार हो चुके थे।

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