इस पर सभी सदस्यों ने सहमति व्यक्त करते हुए यह निर्णय लिया है कि नवरात्र पर्व पर घी के ज्योत नहीं जलाए जाएंगे। सदस्यों ने बताया कि मिलावटी घी का तथ्य कई बार सामने आ चुका है और मिलावटखोरों पर सरकार द्वारा कार्रवाई की गई है। आस्था स्वरूप लोग मंदिरों में घी के ज्योत जलाते हैं, उन्हें ज्यादा तकलीफ तब पहुंचता है जब घी के मिलावटी होने के बात सामने आती है।
शुद्ध घी नहीं मिलता और ब्रांडेड कंपनियों के घी महंगे होने के कारण यह संभव नहीं हो पाता कि कम लागत में श्रद्धालुओं की भावनाओं का ख्याल रखा जा सके। इस कारण से यहां केवल मनोकामना के तेल के ज्योत प्रज्जवलित होंगे।
समिति के अध्यक्ष दुर्गा चंद्राकर ने बताया कि बैठक में सभी सदस्यों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है, महंगाई को देखते हुए तेल ज्योति के दाम भी बढ़ाए जा सकते हैं। यहां यह बताना लाजमी होगा कि श्रद्धालुओं की संख्या दिनो-दिन बढ़ती जा रही है, पहले यहां 500 के आस-पास मनोकामना के ज्योत जलाए जाते थ। धीरे-धीरे संख्या बढ़ते-बढ़ते दो हजार के आसपास पहुंच गई है। इसमें 500 के आसपास घी के ज्योत जलाने वालों की संख्या है, अधिकांश श्रद्धालु प्रतिवर्ष मनोकामना के ज्योत जलाते हैं।
नगर के मध्य विराजित मां महामाया को नगर की कुलदेवी के रूप में जाना जाता है, इसलिए इस मंदिर पर लोगों की अगाध श्रद्धा है। चैत्र व क्वांर नवरात्र में मनोकामना के अखंड ज्योति जलाए जाते हैं। चैत्र नवरात्र 23 मार्च से शुरू हो रहा है। इसे लेकर तैयारियां शुरू की जा रही है, श्री चंद्राकर ने बताया कि 1 मार्च को पुन: समिति की बैठक होगी, जिसमें अनेक निर्णय लिए जाएंगे। जब से घी में चर्बी मिलाने की बात सामने आई है तब से श्रद्धालुओं का बाजार में मिलने वाले घी से विश्वास उठ गया है और वे केवल ब्रांडेड कंपनियों पर ही भरोसा कर रहे हैं। कई दिवालियों में सस्ते दाम पर मिलने वाले घी से ज्योत जलाए जा रहे थे।
चंडी मंदिर बिरकोनी में नहीं जलते घी के ज्योत
डेढ़-दो साल पूर्व घी में चर्बी मिलाए जाने की घटना प्रकाश में आने के बाद चंडी मंदिर बिरकोनी समिति प्रबंधन ने निर्णय लेकर नवरात्रियों में मनोकामना के जलने वाले घी के अखंड ज्योति पर प्रतिबंध लगा दिया है।
यहां अब घी के ज्योत नहीं जलाए जाते, श्रद्धालुओं से केवल तेल ज्योत के लिए ही निवेदन किया जाता है, यहां बताना लाजमी होगा कि चंडी मंदिर बिरकोनी में करीब ढाई दशक पूर्व घी से ही ज्योत जलाना शुरू हुआ था और यहां केवल घी के ही ज्योत जलते थे, बाद में श्रद्धालुओं की तादाद बढ़ने के साथ-साथ भावना के अनुरूप तेल के ज्योत शुरू किया गया।
अनेक मंदिर समिति द्वारा भी मिलावटी घी को देखते हुए घी के ज्योत नहीं जलाने पर विचार किया जा रहा है। कुछ समितियों का यह भी कहना है कि जिन श्रद्धालुओं को घी के ज्योत जलाना हो उन्हें स्वयं शुद्ध घी की व्यवस्था कर सकते हैं, इसके लिए घी के अलावा उन्हें प्रबंधन समिति के निर्धारित शुल्क देना होगा।
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