
कई लोग अपनी शक्ति को नहीं पहचान पाते। वे क्या कर सकते हैं, वे खुद नहीं जानते। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो खुद किसी कमजोरी को पकड़े रहते हैं लेकिन सोचते हैं कि कमजोरी ने उन्हें जकड़ रखा है।
हम अपनी शक्ति से चाहें तो किसी भी परेशानी से खुद ही मुक्ति पा सकते हैं। जरूरत सिर्फ दृढ़ इच्छाशक्ति की है। लेकिन अक्सर हम मात खा जाते हैं। परेशानियां तो दूर की बात है, कई बार हम अपनी आदतों से ही पीछा नहीं छुड़वा पाते।
किस्सा महान विनोबा भावे का है। वे अक्सर लोगों को अच्छी सलाह देते थे। परेशान लोगों की मदद किया करते थे। उन्हें संत माना जाता था। वे अपने व्यवहार से संत थे। एक दिन एक नौजवान उनके पास पहुंचा। वह बहुत परेशान था। संत विनोबा भाावे ने उससे पूछा कि परेशानी का कारण क्या है?
युवक ने बताया कि वह खुद की शराबखोरी से परेशान है। रोजाना शराब पीता है। उसका तो बुरा हो ही रहा है, उसके कारण परिवार भी परेशान है। वो शराब छोडऩा चाहता है लेकिन शराब की लत उसे छोड़ नहीं रही है। वो कितनी भी कोशिश करे, उसके कदम अपनेआप शराब खाने की ओर मुड़ जाते हैं।
विनोबा भावे ने उसकी बातें गौर से सुनीं। उन्होंने युवक से कहा कि वो कल आकर फिर मिले। अगले दिन युवक फिर घर पहुंचा। वे भीतर थे। युवक ने आवाज लगाई। कोई जवाब नहीं मिला। कुछ ही पलों में विनोबा भावे के चिल्लाने की आवाज आई। वे चिल्ला रहे थे छोड़ दो मुझे, छोड़ दो। युवक उनकी मदद करने भीतर की ओर दौड़ा।
उसने देखा विनोबा भावे एक खंभा पकड़कर खड़े हैं और चिल्ला रहे हैं। युवक बोला खंभे ने आपको नहीं, आपने खंभे को पकड़ रखा है। जब तक आप उसे नहीं छोडेंगे, वो नहीं छूटेगा। विनोबा बोले बस ऐसे ही तुमने शराब को पकड़ रखा है, शराब ने तुम्हें नहीं। तुम मन से कोशिश करोगे तो ये छूट जाएगी। युवक को बात समझ में आ गई।
विनोबा ने कहा ये शक्ति तुम में है कि तुम किसी को पकड़ या छोड़ सकते हो। शराब तो निर्जीव है, वो तुम्हें कैसे पकड़ सकती है। अपनी शक्ति को पहचानो और उसे अच्छे काम में लगाओ।
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