नई दिल्ली. लोकसभा में हुई फजीहत के बाद अब विधेयक राज्यसभा में फंसता नजर आ रहा है। सरकार के रणनीतिकारों को बुधवार को राज्यसभा में नंबर जुटाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी। वहां यूपीए पहले से अल्पमत में है। मुश्किल यह भी है कि राज्यसभा में अगर कोई नया संशोधन आता है तो विधेयक फिर से लोकसभा में लाना होगा।
इससे पहले लोकपाल बिल दिनभर की बहस के बाद मंगलवार रात को लोकसभा में पास हो गया। हालांकि उसे संवैधानिक दर्जा नहीं मिल पाया। संवैधानिक दर्जे के मोर्चे पर सरकार की हार के चलते विपक्ष ने उससे इस्तीफा मांगा।
इससे पहले बहस में विपक्ष ने इसे कमजोर विधेयक बताते हुए संशोधन पर जोर दिया। रात दस बजे हुई वोटिंग (ध्वनिमत) में विपक्ष के सभी संशोधन खारिज हो गए। सपा और बसपा ने वोटिंग के दौरान वॉकआउट कर दिया। अब इस विधेयक की राज्यसभा में कड़ी परीक्षा होगी।
लोकायुक्त नियुक्ति की अनिवार्यता से भी पीछे हटना पड़ा सरकार को
पूरे 43 साल बाद। लोकसभा ने मंगलवार को लोकपाल बिल को मंजूरी दे दी। यह नौवां लोकपाल बिल है। हालांकि इस बार सरकार पूरी कोशिश के बावजूद लोकपाल को संवैधानिक दर्जा नहीं दिला सकी।
उसे राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति के मामले में भी पीछे हटना पड़ा। विपक्ष ने इस पर सरकार को आड़े हाथों लेते हुए इस्तीफा मांगा। भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने कहा कि सरकार को बने रहने का नैतिक रूप से कोई अधिकार नहीं है। इस बीच विपक्ष के सभी संशोधन गिर गए।
सदन में सरकार के पास दो-तिहाई बहुमत नहीं होने की वजह से लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक गिर गया। कांग्रेस महासचिव ने लोकपाल को यह दर्जा देने की मांग की थी। सदन में मंगलवार को इसके साथ ही भ्रष्टाचार उजागर करने वालों को सुरक्षा मुहैया कराने संबंधी विधेयक (लोकहित प्रकटन और प्रकट करने वाले व्यक्तियों का संरक्षण विधेयक, 2010) को भी मंजूरी मिल गई। सरकार ने विधेयक में करीब दस संशोधन किए।
इनमें राज्यों के लिए लोकायुक्तों की नियुक्ति को अनिवार्य किए जाने के प्रावधान को हटा लिया गया है। सरकार ने कहा कि वह सभी मुख्यमंत्रियों की राय के बाद ही इस संबंध में अधिसूचना जारी करेगी। सेना और कोस्ट गार्ड को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा गया है।
साथ ही संसद के सदस्य कार्यकाल पूरा होने के सात साल बाद इसके दायरे में आएंगे। पहले यह अवधि पांच साल थी। विपक्षी पार्टियों ने कॉपरेरेट्स, मीडिया और विदेशी चंदा प्राप्त करने वाले एनजीओ को इसके दायरे में लाने की मांग करते हुए संशोधन प्रस्तुत किए थे। ये अस्वीकृत हो गए।
कौन जाने भविष्य क्या होगा?
संशोधनों और संवैधानिक दर्जे पर हार के मायने..
सरकार को पता था कि संवैधानिक दर्जे के लिए दो-तिहाई बहुमत उसके पास नहीं है। इसके बावजूद इसकी कोशिश की गई। उसका सोचना था कि यदि भाजपा ने साथ दिया तो राहुल गांधी प्रमोट होंगे। यदि भाजपा ने साथ नहीं दिया तो हमदर्दी लेकर उसे कठघरे में खड़ा किया जाएगा।
सरकार लोकायुक्तों के मसले पर सहयोगी दलों को मना नहीं सकी। संवैधानिक दर्जे को लेकर विपक्षी दलों से बात नहीं हुई। सो शर्मिदगी उठानी पड़ी।
‘कभी-कभी ऐसा होता है।’
मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री (संवैधानिक दर्जा नहीं मिलने की बात पर)
‘दो-तिहाई बहुमत नहीं होने से हारे। इसके लिए भाजपा जिम्मेदार।’
- प्रणब मुखर्ज
1968 में पहली बार तैयार हुआ था बिल
पहली बार 1968 में यह बिल तैयार हुआ था। लोकसभा ने पारित भी किया। लेकिन लोकसभा भंग होने से यह रद्द हो गया। इसके बाद सात बार विधेयक पेश हुआ। पारित नहीं हो पाया। एक बार सरकार ने इसे वापस ले लिया।
यूं चली बहs विभाजन का नया बीज...
‘धर्म आधारित आरक्षण के जरिए यह बिल विभाजन का नया बीज बोने का काम करेगा। विपक्ष आखों देखी मक्खी नहीं निगल सकता। केंद्र सरकार देशभर में हो रहे आंदोलन की बला को अपने सिर से टालने के लिए आनन-फानन में विधेयक को पारित कराना चाहती है।’
- सुषमा स्वराज, विपक्ष की नेता, लोकसभा
यह षड्यंत्र है
‘यह राजनीतिक षड्यंत्र है। विपक्ष की मंशा है कि यह विधेयक पारित हो ही नहीं। पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों में जनता के बीच उलटे सरकार के खिलाफ प्रचार किया जाए। मुस्लिमों को आरक्षण का भाजपा क्यों विरोध कर रही है?
- कपिल सिब्बल, मानव संसाधन मंत्री
फांसी का घर है लोकपाल
‘द्रोपदी के पांच पति थे, सीबीआई के नौ पति होने जा रहे हैं। इससे पूरा तंत्र अस्त-व्यस्त हो जाएगा। लोकपाल सांसद, अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों के लिए फांसी घर है।’
- लालू प्रसाद यादव, राजद प्रमुख
‘सरकार को आलोचनाओं पर नाराज होने के बजाय उचित राय मान लेनी चाहिए।’
- मुलायम सिंह यादव, अध्यक्ष, सप
कितने कानून बनाओगे, हाथ-पांव बांधकर किसी से कैसे काम कराओगे।’
- शरद यादव, अध्यक्ष, जनता दल (यू)
लोकपाल की अपनी जांच एजेंसी होना चाहिए अन्यथा यह बेअसर हो जाएगा।’
बासुदेव आचार्य, माकपा
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