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27 दिसंबर 2011

फिर लक्ष्मी देवी को मार दी ठोकर, कितने पत्थर दिल होंगे वो मां-बाप!

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"फिर किसी ने लक्ष्मी देवी को ठोकर मार दी आज कूड़ेदान में फिर एक बच्ची मिल गई।"

- मुनव्वर राना

उदयपुर.कोख से दुनिया में आते ही अपनों द्वारा मरने के लिए छोड़ दी गई एक नवजात को परायों ने संभाला और पालने में रखने के बाद बाल चिकित्सालय की नर्सरी तक भी पहुंचाया। उसका कसूर शायद सिर्फ इतना था कि उसने बेटी के रूप में जन्म लिया था।

डॉक्टरों ने भी बचाने की लाख कोशिश की, लेकिन उसकी जिंदगी बचाई नहीं जा सकी। मंगलवार को जन्म के चंद घंटों बाद फेंक दी गई थी यह बच्ची दोपहर दो बजे के आसपास नर्सरी तक पहुंचा दी गई थी, लेकिन रात पौने 10 बजे उसने दम तोड़ दिया।

गौरतलब है कि दैनिक भास्कर ने 8 दिसंबर को गर्ल चाइल्ड डे पर बालिकाओं को बचाने की मुहिम छेड़ी थी। इसका नतीजा यह हुआ कि महेशाश्रम में पल रही मासूम बच्चियों की मदद के लिए सैकड़ों हाथ उठे।

कई लोगों ने बच्चियों को गोद लेने का प्रस्ताव दे दिया जो विचाराधीन है। इसके अलावा लोगों ने इन बच्चियों के लिए कपड़े, खिलौने, दवाइयों सहित अन्य उपकरण भी भेंट किए।

कितने पत्थर दिल होंगे वो मां-बाप

वो जन्मदाता कितने पत्थरदिल थे, जिन्होंने दुनिया में आए कुछ ही घंटों बाद इस नवजात बेटी को मरने के लिए छोड़ दिया था।छोड़ा भी कहां बड़े (एमबी) अस्पताल के सुलभ घर में। टपकते नल के नीचे अखबार में लपेटकर। इस ठंड में जब ऊनी कपड़े भी नाकाम हो चले हैं तब यह बच्ची कागज के आवरण में थी और पास ही टपक रही थी ठंडी बूंदें।

..एक चोट और लग गई

वो तो गनीमत थी कि रोने की मद्धम सी आवाज एक मरीज के परिजन तक पहुंच गई थी, जिसने उसे पालनाघर के पालने तक पहुंचा दिया था। दुर्भाग्य ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा और नर्सरी में ले जाने की कोशिश के दौरान गार्ड नीचे गिर गया था और नवजात गिरकर चोटिल हो गई थी। गंभीर हालत में उसे नर्सरी के आईसीयू में रखा गया था।

सुलभघर में टपकते नल के नीचे मिली थी

मानवीयता को झकझोर देने वाली यह घटना बड़े अस्पताल में वार्ड 6 के पास बने सुलभ घर में हुई। वार्ड 5 में भर्ती गुरुपाल की सेवा में लगी उनकी बेटी सेक्टर 5 निवासी हंसा जैन ने नवजात को सुलभ घर से उठाकर जनाना अस्पताल के बाहर लगे पालने तक पहुंचाया था।

हंसा ने पालनाघर के गार्ड और समाजसेवी देवेंद्र अग्रवाल से मिलकर इलाज की व्यवस्था करवाई थी। उसे नर्सरी में ऑक्सीजन पर रखा गया। इलाज करने वाले डॉ. विवेक अरोड़ा के मुताबिक जन्म के तीन से चार घंटे बाद ही परिजन उसे छोड़ गए थे। नल के नीचे रखने से शरीर नीला पड़ चुका था। फेंफड़ों से खून आने लगा था।

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