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24 दिसंबर 2011

हिमालय में नजर आए वह दिव्य पुरुष थे ईसा मसीह..!

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ईसाई धर्म के पवित्र ग्रंथ बाइबल के मुताबिक प्रेम ही ईश्वर का स्वरूप है। प्रभु यीशु भी प्रेम की साक्षात् मूर्ति माने जाते हैं। प्रभु यीशु का यही सबक था कि शांति व हर प्राणी में बसे प्रेम रूपी इसी ईश्वर से जुड़े बिना किसी भी धर्म का पालन करना संभव नहीं। उनका जन्मदिवस क्रिसमस डे भी प्रेम और शांति का ऐसा ही पैगाम लेकर आता है।

प्रभु यीशु यानी ईसा मसीह द्वारा सिखाए गए मानव धर्म और प्रेम के संदेशों से जुड़ा प्रसंग हिन्दू धर्मग्रंथों में भी मिलता है। जिसके मुताबिक ईसा मसीह हिमालय के शिखरों पर दिखाई दिए व धर्म व प्रेम से जुड़ी बातों को उजागर किया।

जी हां, हिन्दू धर्मग्रंथ भविष्य पुराण की कथा के मुताबिक प्रतापी राजा विक्रमादित्य के बाद जब बाहरी शासक हिमालय के रास्ते भारत में आकर आर्य संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करने लगे। उस वक्त विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन ने उनको पराजित किया। साथ ही रोम, कामरूप आदि देशों के अत्याचारियों को पकड़ दण्डित भी किया। राजा ने ऐसे दुराचारियों यानी म्लेच्छों के लिये सिन्धु नदी के उस पार का क्षेत्र नियत किया। वहीं, आर्यों के लिये सिंधु प्रदेश।

इसी दौरान एक बार जब राजा शालिवाहन हिमालय क्षेत्र में पहुंचे तो वहां उन्हें एक गोरा, सुन्दर, सफेद वस्त्र पहनें दिव्य पुरुष दिखाई दिया। उनसे परिचय पूछने पर उन्होंने स्वयं को ईश्वर का पुत्र बताया। साथ ही बताया कि वह कुंवारी मां के गर्भ से जन्मे धर्म प्रचारक व सत्य व्रत का पालन करने वाले हैं।

राजा द्वारा उनका धर्म पूछने पर ईशपुत्र ने बताया कि मैं म्लेच्छ प्रदेश में सत्य व मर्यादा का नाश हो जाने से धर्म स्थापना के लिए आया हूं। यही नहीं, उस दिव्यात्मा ने धर्म पालन के लिए मन और तन की मलीनता को दूर करने, सत्य व न्याय को अपनाने व ईश्वर प्रेम को जरूरी बताया।

इस पौराणिक कथा के मुताबिक धर्म, सत्य और प्रेम से भरे आचरण से ही उस दिव्य पुरुष के हृदय में ईश्वर का वास हुआ। जिससे वह ईसा मसीह के रूप में प्रसिद्ध हुए। राजा शालिवाहन ने धर्म संदेश सुन उनको प्रणाम किया, म्लेच्छों के कल्याण के लिए स्थान बताया और अपने राज्य में आकर अश्वमेध यज्ञ किया।

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