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24 दिसंबर 2011

जानें, यीशु की वह 1 बात! जिससे अधूरा नहीं रहता कोई काम या सपना

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क्रिसमस का दिन ईसा मसीह के जन्म की शुभ घड़ी मानी जाती है। यह घड़ी उत्साह, उमंग, उल्लास, स्नेह से भरपूर होती है। इस दिन क्रिसमस ट्री के दमकते सितारे हो या सेंटा क्लॉज के उपहार उम्मीदों की रोशनी से जीवन की राह आसान बनाने वाले होते हैं।

जीवन के सकारात्मक पक्ष से जोडऩे वाली इन सभी भावनाओं के उजागर होने के पीछे मन का ही एक भाव अहम होता है। यह भाव है - क्षमा। प्रभु ईसा ने इसी भाव को न केवल उपदेशों द्वारा बल्कि स्वभाव, व्यवहार में अपनाकर वास्तविक सुख व शांति पाने का श्रेष्ठ व अहम सूत्र बताया।

दरअसल, व्यावहारिक रूप से क्षमा भाव तभी संभव होता है, जब मन, वचन, विचार या स्वभाव में प्रेम का भाव समाया हो। जिसके लिये भी सत्य से जुडऩा जरूरी है। प्रभु यीशु के द्वारा जीवन को खुशहाल बनाने के लिये दी गई ऐसी ही एक सीख में इंसान या ईश्वर से रिश्ता बनाने में क्षमा के साथ प्रेम और सत्य की अहमियत भी उजागर होती है।

जीसस के उपदेशों के एक बेहतरीन ग्रंथ सर्मन आन दी माऊण्ट में क्षमा कहा गया है कि -

अगर तू ईश्वर के सामने अर्पण हेतु कुछ लाता है और वहां पर तुझे अपने भाई से विरोध और वैमनस्यता का स्मरण होता है तो तू वापस लौट जा और पहले अपने भाई से विरोध समाप्त कर ले, घृणा समाप्त कर ले, वैमनस्यता कर ले, क्षमा करना सीख ले और जब ऐसा कर सके तब ईश्वर के समक्ष आ, तभी तेरा अर्पण ईश्वर को स्वीकार होगा।

इस बात से साफ है कि जीवन में किसी भी लक्ष्य या सपना को पूरा करने के लिए क्षमा भाव से मन को नियंत्रित रखें। मन में दूसरों के प्रति दुर्भावना या कटुता को बिल्कुल जगह न दें। संबंधों को विनम्रता और क्षमाशीलता द्वारा सहज, सरल और सुगम बनाये रखें। जिससे मन स्वस्थ रहेगा और सुख, सफलता व शांति की आस पूरी होगी। इसलिये ईसा को याद कर बस, क्षमा करना सीखें।

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