एक बार की बात है श्रीकृष्ण ने अपने ऊपर रणछोड़ होने का आक्षेप भी स्वीकार कर लिया। जब महाबली मगधराज जरासन्ध ने देखा कि श्रीकृष्ण और बलराम तो भाग रहे हैं, तब वह हंसने लगा। उसे भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामजी के ऐश्वर्य, प्रभाव आदि का ज्ञान न था। बहुत दूर तक दौडऩे के कारण दोनों भाई कुछ थक से गए। अब वे बहुत ऊंचे प्रवर्शण पर्वत पर चढ़ गए। उस पर्वत का प्रवर्षण नाम इसलिए पड़ा था कि वहां सदा ही मेघ वर्षा किया करते थे।
जब जरासन्ध ने देखा कि वे दोनों पहाड़ में छिप गए और बहुत ढूंढने पर भी पता न चला, तब उसने ईंधन से भरे हुए प्रवर्शण पर्वत के चारों ओर आग लगवा कर उसे जला दिया। जब भगवान् ने देखा कि पर्वत के छोर जलने लगे हैं, तब दोनों भाई जरासन्ध की सेना के घेरे को लांघते हुए बड़े वेग से उस ग्यारह योजन (44 कोस) ऊंचे पर्वत से एकदम नीचे धरती पर कूद आए। उन्हें जरासन्ध ने अथवा उसके किसी सैनिक ने देखा नहीं और वे दोनों भाई वहां से चलकर फिर अपनी समुद्र से घिरी हुई द्वारकापुरी में चले आए।
जरासन्ध ने ऐसा मान लिया कि श्रीकृष्ण और बलराम तो जल गए और फिर वह अपनी बहुत बड़ी सेना लौटाकर मगध देश को चला गया।इस बात की बड़ी चर्चा होती है कि भगवान युद्ध से भागे थे। आईए इस फिलॉसाफी पर चर्चा करें....। इस कहानी के माध्यम से कृष्ण हमें कूटनीति सीखा रहे हैं। वे तो भगवान थे क्या वे जरासंध से हार जाते ,नहीं? लेकिन उनका एकमात्र संदेश यह है कि जब दुश्मन आपसे अधिक बलशाली हो तो पहले अपने आप को इतना मजबूत बनाएं कि उससे लड़ सकें। उसके बाद ही दुश्मन को ललकारें। अगर आप उसका सामना करने के लायक नहीं है तो मैदान छोडऩे में कोई बुराई नहीं है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
23 दिसंबर 2011
जब दुश्मन हो आपसे ताकतवर तो क्या करें?
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