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30 दिसंबर 2011

अल्पसंख्यकों को वर्ष २००७ में आरक्षण के सिफारिश के चार साल बाद आरक्षण अचानक देने के पीछे मंशा क्या है पहली साम्प्रदायिक अधिसूचना रद्द क्यूँ नहीं करते



दोस्तों यह अल्पसंख्यकों को दिए जाने वाले आरक्षण की अधिसूचना है इसमें वर्ष १९९३ में जब इन्द्र साहनी मामले में मुस्लिमों को भी धर्म के आधार से अलग हटकर आरक्षण की सूचि में शामिल करने के आदेश के बाद अधिसूचना निकाली गयी थी उसका हवाला है ..फिर १० मई २००७ की रिपोर्ट का हवाला है तो दोस्तों देखलो यह आरक्षण का लाभ अल्पसंख्यकों को वर्ष २००७ में मिलना था लेकिन यह लाभ वर्ष २०११ यानी पुरे चार साल बाद क्यूँ मिला किसी के पास जवाब नहीं है .......दोस्तों यह तो इस अधिसूचना की बात है लेकिन आरक्षण के १९५१ की अधिसूचना आप देखेंगे तो भाजपा की बात आप को याद आएगी के आरक्षण धर्म के नाम पर नहीं होना चाहिए केवल आवश्यकता और पिछड़े आधार पर होना चाहिए जी हाँ दोस्तों इस अधिसूचना में अधिसूचित जातियों को जोड़ कर विशेष नोट अंकित किया गया है के यह आरक्षण केवल हिन्दुओं के लियें है जिसमे बाद में सिक्ख ओर्बोद्ध शब्द जोड़ा गया है तो दोस्तों अगर केवल हिन्दुओं के लियें आरक्षण है तो फिर मांस का व्यसाय करने वाले खटिक और कसाई अलग अलग हो जाते हैं कपड़ा बुनने वाले बुनकर और कोली समाज अलग अलग हो जाता है और भी कई जातियां कई दस्तकार है जो केवल इस अधिसूचना से मुसलमान होने के कारण पिछड़ गये है तो जनाब धर्म के आधार पर जारी इस अधिसूचना को इस धर्म निरपेक्ष देश में अब तो खत्म करवा दो ताकि सभी पात्र भारतियों को इसका लाभ मिल सके क्या ऐसा करवा सकोगे अगर नहीं तो भाई यह आरक्षण किस काम का फिर तो काबलियत के आधार पर लोगों को आगे आने तो आरक्षण के नाम पर राजनीति बंद कर समान देश की बुनियाद मजबूत करो भाई ....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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