इसलिए इस मंदिर की उम्र भी लगभग इतनी ही मानी जाती है। यह मंदिर सिर्फ सूर्य देव की पूजा के लिए बना था या यहां लोगों को दफनाया जाता था या फिर ये सिर्फ देवता के सम्मान में बना था, ऐसे तमाम सवालों का कोई ठोस जवाब नहीं मिलता है।
यह मंदिर अफ्रीका के खेमेतिअन लोगों द्वारा बनाया गया था। ये लोग पत्थरों के निर्माण और इंजीनियरिंग में माहिर थे। फिर भी इन लोगों ने हजारों टन के इन बड़े-बड़े पत्थरों को किस तरह उठाया होगा, इन्हें किन मशीनों से काटा होगा, ऐसे तमाम सवाल राज बने हुए हैं।
सबसे ज्यादा आश्चर्य पत्थरों के बीच में किए गए गोल छेद देखकर होता है। सदियों पहले आज जैसे आधुनिक उपकरण भी नहीं होते थे। फिर उन लोगों ने किस तरह ये होल ड्रिल किए थे। यहां पर बड़े-बड़े बेसिन भी बने हैं। समझा जाता है कि जानवरों की यहां बलि दी जाती होगी और पत्थर की नालियों से बहकर खून इनमें आता होगा। फिर भी वहां से किसी तरह के चाकू-छुरी या फिर खून के डीएनए नहीं मिले हैं।
राज है गहरा
1898 में सूर्य मंदिर की खोज की गई थी। इसके ज्यादातर हिस्से क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण इसे कैसे बनाया गया था और यहां क्या होता था, इनका जवाब नहीं मिलता है।
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