अरनोद दशहरा पर्व पर जहां देशभर में बुराई के प्रतीक रावण का पुतला दहन किया गया, वहीं प्रतापगढ़ जिले के खेरोट गांव में मिट्टी का पुतला बंदूक से छलनी किया गया। यहां यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है।
पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से इस गांव में वर्र्षो पहले मिट्टी से रावण का पुतला बनाना शुरू किया गया। ग्रामीण इस पुतले के सिर को अपनी बंदूक की गोली का निशाना बनाते हैं। गुरुवार को पर्व पर इस परंपरा का निर्वहन किया गया। बड़ी संख्या में ग्रामीणों के बीच से अध्यापक भूपेंद्र नागर ने रावण के सिर पर अचूक निशाना लगाया।
क्या हैं परंपरा गांव का ही एक व्यक्ति गांव के बाहर मिट्टी का रावण तैयार करता हैं। रावण का धड़ पुराना ही काम आता है, जबकि उसका सिर हर साल नया तैयार किया जाता हैं। मटके से बने सिर में लाल रंग भरा जाता है। मुख्य मंदिर से भगवान श्रीराम सहित देवी-देवताओं की ढ़ोल नगाड़ों के साथ शोभायात्रा गांव का भ्रमण करते हुए मैदान पहुंचती हैं।
यहां भगवान श्रीराम के पूजन के बाद गांव के ठिकानेदार परिवार द्वारा रावण के पुतले की नाक को भाले से बींधा जाता हैं। इसके बाद पुतले पर एक-एक करके गोलियों की बौछार होती है। जिस व्यक्ति की बंदूक से रावण का सिर पर निशाना लगता है वह विजयी घोषित किया जाता है। नहीं मिलता बारूद : पहले दशहरे के दिन यहां 50 -60 बंदूकधारी ग्रामीण एकत्रित होते थे, लेकिन अब बंदूक लाइसेंस की सख्ती के कारण इनकी संख्या भी कम हो गई है।
गांव के कृष्ण वल्लभ व्यास बताते है कि ग्रामीण लकड़ी को व्यर्थ जलाना पाप समझते हैं। पुराने समय में यहां घना जंगल था। रावण दहन से जंगल में आग लगने का खतरा था, इसलिए यह परंपरा शुरू की गई जो आज भी बरकरार है।
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