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29 अक्तूबर 2011

सगे बेटे तो 'रुमाल' तक न दे पाए और पराए 'साड़ी' लेकर आए


अहमदाबाद। 'भई! जिंदगी में कभी अपना सगा बेटा तो अपने लिए रुमाल तक नहीं लाया और ये पराए होकर भी दीवाली के दिन हमारे लिए साड़ी ले आए'... ये शब्द कहते-कहते एक वृद्धा का गला रुंध गया और उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। दृश्य था अहमदाबाद स्थित नारणपुरा जीवनसंध्या वृद्धाश्रम का।

अहमदाबाद, सीजी रोड पर रहने वाले और केबल के व्यवसायी मनीषभाई शाह परिवार तथा मित्रों के साथ दीवाली के अवसर पर सुबह ही इस वृद्धाश्रम में रहने वाले वृद्धों के लिए कपड़े और उपहार लेकर पहुंच गए। बच्चों ने अपने हाथों से वृद्धों को उपहार देते हुए कहा 'दादा ये आपके लिए शर्ट-पैंट', दादी ये आपके लिए साड़ी है...उपहार लेने वाले वृद्धों की आंखों से खुशी के आंसू छलक उठे। कुछ देर के लिए यहां का माहौल भी गमगीन हो गया लेकिन जो सबसे बड़ी खुशी थी तो यह कि भले ही वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों के बेटे-बेटियों ने उन्हें भुला दिया हो लेनिक उनसे कहीं ज्यादा संख्या में दूसरे बेटे-बेटियां उनकी चिंता करने, उनके साथ खुशियां मनाने, उनका आर्शीवाद लेने हाजिर हैं।


कीमत साड़ी की नहीं, प्रेम की है - हीराबा

वृद्धाश्रम में रहने वाली एक वृद्धा हीराबा ने कहा कि दीवाली के अवसर पर सुबह ही ये लोग हमसे मिलने आ गए, हमारे लिए तोहफे लाए, साड़ी लाए... कीमत साड़ी या तोहफों की नहीं, प्रेम की है कि इन्होंने हमें याद रखा और हमें अकेलेपन के अहसास मिटाने और हमारे साथ खुशियां बांटने आ गए।


मानवता अब भी लोगों के सीने में धड़कती है

दीवाली के पावन अवसर पर ये लोग वृद्धाश्रम में मौजूद सभी लोगों के लिए कपड़े व उपहार लाए, उनके साथ समय बिताया। यह इस बात का उदाहरण है कि अब भी लोगों के सीने में मानवता धड़कती है।

-फरशुभाई कक्कड़, (वृद्धाश्रम संचालक)

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