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23 अक्टूबर 2011

देखें तस्‍वीरें, इन घातक हथियारों से अमेरिका जमाता है दुनिया पर धौंस


अमेरिका सेना का तकनीक के मामले में कोई सानी नहीं है। इसका शुमार दुनिया की सबसे आधुनिक और सक्षम सेनाओं में है। अमेरिका हर साल कुछ नए हथियारों और तकनीकों को विकसित करके अपनी सेना को ज़्यादा सशक्त बना रहा है। पिछले एक साल में अमेरिका ने ऐसे ही कुछ नए हथियारों और तकनीकों को अपनी जखीरे में शामिल किया है।


ग्रीन आईज एस्केलेशन सिस्टम क्राउज सिस्टम के साथ ग्रीन आईज एस्केलेशन सिस्टम बेहद कारगर तकनीक है। इसके जरिए जंगी गाड़ियों से हरे रंग की किरणें निकलती हैं, जो दुश्मन के लिए एक दीवार की तरह काम करती हैं। इन किरणों के फैलते ही सामने मौजूद शख्स के लिए कुछ भी देख पाना संभव नहीं होता है। ऐसे में दुश्मन पर बेहद आसानी से काबू पाया जा सकता है। इस तकनीक का एक इस्तेमाल जंग के हालात में अपने लोगों को खतरनाक इलाकों से दूर रखने के लिए संकेत के तौर पर भी होता है।

हस्की मार्क 3, 2 जी 2-सीट प्रोटोटाइप यह गाड़ी बारूदी सुरंग की जानकारी तुरंत देती है और बम विस्फोट को झेलने की क्षमता रखती है। मैदान-ए-जंग में ही इस गाड़ी की मरम्मत की जा सकती है।

40 मिमी इन्फ्रारेड इल्यूमिंनेंट कारट्रिज, एम 992 रात में इन गोलियां की मदद से सैनिक बहुत असरदार ढंग से दुश्मन का सामना कर सकता है। दरअसल, इस गोली की खासियत यह है कि इसे दागने पर इन्फ्रारेड (पराबैंगनी) किरणें निकलतीं हैं, जो सामान्य तौर पर नहीं दिखती हैं। इन गोलियों को नाइट विज़न डिवाइस की मदद से देखा जा सकता है, जिसका इस्तेमाल अमेरिकी सैनिक इराक और अफगानिस्तान में करते हैं।

जैकाल एक्सप्लोसिव हजार्ड प्री डेटोनेशन सिस्टम यह जंगी गाड़ी इम्प्रोवाइज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) को नाकाम कर सकती है। 2010 में यूएस आर्मामेंट रिसर्च डेवलपमेंट एंड इंजीनियरिंग सेंटर ने जैकाल को विकसित किया था। रूट क्लियरेंस यानी सैनिकों के आगे बढ़ने के लिए रास्ते को आईईडी ब्लास्ट के खतरे से मुक्त करना इस गाड़ी का मुख्य काम है।

एम 240 एल 7.62 एमएम लाइटवेट मीडियम मशीन गन यह मशीन गन पहले से मौजूद एम 240 बी मशीनगन से काफी हल्की है, लेकिन इसकी मारक क्षमता में कोई कमी नहीं की गई है। टाइटेनियम धातु से बनी एम 240 एल मशीनगन को हथियारों की तकनीकी विकास में अहम कड़ी माना जा रहा है। इस मशीनगन को सैनिकों से मिली जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है।

एमकेयर प्रोजेक्ट एमकेयर यह सेलफोन पर आधारित संदेश भेजने और पाने का तरीका है। इसे अमेरिकी सेना की मेडिकल रिसर्च एंड मैटीरियल कमांड के टेलीमेडिसिन एंड एडवांस्ड टेक्नॉलॉजी रिसर्च सेंटर ने विकसित किया है। एमकेयर का इस्तेमाल घायल सैनिक कर सकते हैं। इसे सेना की जरूरत के हिसाब से संचार का अहम औजार माना जाता है।

मोर्टार फायर कंट्रोल सिस्टम डिस्माउंटेड (एमएफसीएस-डी) एमएफसीएस-डी की मदद से पहले राउंड में गोलियां दागने की क्षमता बढ़ाई गई है। एमएफसीएस-डी की मदद से दिन या रात में महज दो मिनट में पहले राउंड की गोलियां दागी जा सकती हैं। पहले इसी तरह के सिस्टम से पहले राउंड की गोलियां दागने में दिन में 8 मिनट और रात में 12 मिनट लगता था। इस सिस्टम में कंप्यूटर, बैटरी पावर सप्लाई, डिस्प्ले नेविगेशन और दिशा सूचक हार्डवेयर जैसी चीजें शामिल हैं।

आरजी-31 रोबोट डिप्लॉयमेंट सिस्टम इस सिस्टम के तहत गाड़ी में बैठे-बैठे ही सैनिक रास्ता साफ करने वाले रोबोट को संचालित कर सकता है। इस सिस्टम की मदद से रास्ते को सुरक्षा के लिहाज से साफ करने वाले रोबोट को आसानी से एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाया जा सकता है। इस सिस्टम की मदद से रास्ते को सुरक्षित बनाने के लिए जरूरी कई काम स्वचालित (ऑटोमेटेड) तरीके से किए जा सकते हैं। इस सिस्टम को भविष्य की चुनौतियों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।

सोल्जर वियरेबल इंटीग्रेटेड पावर (स्वाइप) सैनिकों के पहनने के लिए यह एक तरह का जैकेट है, जिसमें सुरक्षा के लिहाज से इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशंस इक्वीपमेंट लगाए गए हैं। इसमें बैटरी पावर का भी सिस्टम है, जिसे 200 घंटे तक चार्ज करने की जरूरत नहीं है। जिंक-एयर बैटरी वाली जैकेट पहनने से सैनिकों का वजन पहले उपलब्ध जैकेट की तुलना में 16 पाउंड कम होता है।

5.56 मिमी एम 855 ए 1 एन्हांस्ड पर्फॉर्मेंस राउंड अमेरिका सेना ने 5.56 मिमी एम855 ए1 गोलियों का विकास किया है। इन गोलियों की खासियत यह है कि यह तांबे से बनी है। ऐसी तीन करोड़ गोलियां अफगानिस्तान में चरमपंथी गुटों से लड़ने के लिए भेजी गई हैं।

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