साथ ही, आर्य समाज मंदिरों की राष्ट्रीय स्तर की प्रतिनिधि सभा को निर्देश दिया कि वह मंदिरों में होने वाले विवाहों में 1993 में गठित नियमों का पालन सुनिश्चित करे। न्यायाधीश दलीप सिंह व एस.एस. कोठारी की खंडपीठ ने यह दिशा-निर्देश दौसा निवासी बुद्धाराम मीणा की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया।
खंडपीठ ने कहा कि मान्यता लेने के बाद आर्य समाज मंदिरों का न तो निरीक्षण होता है और न ही उन पर प्रशासन का नयंत्रण रहता है। ऐसे में शीर्ष संस्था को इनकी गतिविधियों के प्रति जागरूक होना चाहिए। खंडपीठ ने जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वह विवाह करने वाले लड़के व लड़की के नाम सहित पूरी जानकारी नोटिस बोर्ड पर चिपकाएं।
साथ ही, उनके परिजनों को भी नियम 9 के तहत छह कार्य दिवस का नोटिस मंदिर के समीप पुलिस स्टेशन के थानाधिकारी द्वारा दिया जाए। यदि वे शादी से इनकार करें और मंदिर के पदाधिकारी शादी चाहें तो उन्हें इसका कारण देना होगा कि क्या यह समाज के हित में है।
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