तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
22 अक्तूबर 2011
देश की रक्षा के लिए पुत्र का बलिदान
राजस्थान के राजपूतों की बहतरीन और राष्ट्रभक्ति की दास्तान ....................कुछ इस तरह से रही है
देश का जर्रा-जर्रा यह गाथा सुनाता है। यह है- स्वामीभक्ति के लिए पुत्र के बलिदान की। साहस और वीरता की। यह बात कोई 1535 की है। मेवाड़ की गद्दी के उत्तराधिकारी उदयसिंह की हत्या के लिए दासी पुत्र बनवीर चित्तौड़ स्थिल कुंभा महल की ओर तेजी से आ रहा था। उदयसिंह का लालन-पालन का दायित्व उसकी धात्री मां पन्ना के जिम्मे था। उदय की मां रानी कर्मावती पहले ही जौहर में आत्मबलिदान कर चुकी थीं। दासी पुत्र बनवीर की निगाहें मेवाड़ की राजगद्दी पर थी। बार-बार प्रयासों में विफल हो चुके बनवीर ने पन्नाधाय को चकमा देने के लिए महल में दिवाली जैसा उत्सव का माहौल बनाया था। एक के बाद एक हत्या कर बनवीर भूखे शेर की तरह तलवार लेकर महल की ओर बढ़ रहा था। बनवीर की यह मंशा पन्नाधाय से छुप न सकी। उसने तुरंत उदयसिंह को टोकरी में सुला पत्तियों से ढक कर एक सेवक के साथ सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। फिर खाट पर उदयसिंह की जगह अपने पुत्र को लिटा दिया। सत्ता के मद में चूर बनवीर ने वहां पहुंचते ही उदयसिंह समझ कर पन्नाधाय के पुत्र को तलवार घोंप दी। अपने जिगर के टुक ड़े का बलिदान देने के बाद वह व्यंग्य के स्वर में बोलीं- हे! बनवीर मेवाड़ के महाराणा तो तेरी पहुंच से कोसों दूर जा चुके हैं। स्वामीभक्त पन्ना ने अपने जिगर के टुकड़े का बलिदान देकर मेवाड़ के असली वारिस के प्राणों की रक्षा की। कालांतर में जब उदयसिंह तेरह वर्ष के हुए तो उनका राज्याभिषेक कर दिया गया।
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