शिमला। हिमांचल प्रदेश जो एक ओर अपनी प्राकृतिक खूबसूरती की वजह से विश्व भर में प्रसिद्ध है वहीं इस राज्य में कुल्लु के पास एक ऐसा धार्मिक स्थल है जो भले ही बेहद लोकप्रिय नही है लेकिन यह प्रकृति या कहें ईश्वरीय चमत्कार का एक ऐसा स्थल है जो किसी को भी चौकाने की क्षमत रखता है।
कुल्लु से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर बना मणिकर्ण साहिब गुरूद्वारा समुद्र तल से लगभग 1760 मीटर की ऊंचाई पर पार्वती नदी के किनारे बसा है। इसी गुरूद्वारे की ठीक पीछे भगवान शिव, भगवान राम और माता पार्वती का मंदिर स्थित है। मंदिर परिसर के एक ओर जहां बर्फ के समान ठंडे पानी की नदी बहती है, वहीं परिसर के अंदर उसी नदी के एक हिस्से से इतनी गर्मी निकलती है जो किसी अग्नी से कम नही है। यह बेहद चौका देने वाला तथ्य है कि इतने ठंडे प्रदेश में बहने वाली नदी का एक हिस्सा इतना गर्म या खौल क्यों रहा है।
कैसे उबलने लगा नदी का पानी
ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर और माता पार्वती एक बार पृथ्वी भ्रमण पर निकले और जब वह धरती के इस हिस्से से गुजरे तो यहां की प्राकृतिक सुंदरता पर मोहित हो यहां कुछ दिन रूकने का फैसला किया। माना जाता है कि इसी नदी के किनारे वह दोनों लगभग ग्यारह सौ वर्षों तक रहे। प्रवास के दौरान एक दिन जब यह दोनों आराम कर रहे थे तभी माता पार्वती के कान का एक मणि नदी में गिर गया।
माता ने भगवान से उस मणि को ढूंढ लाने का आग्रह किया। काफी खोजबीन के बाद भी जब वह उन्हंे नही मिला तो भगवान इतने क्रोधित हुए कि उन्होने अपनी तीसरी आंख खोल दी। उनके इस क्रोध से पूरा ब्रrांड हिल गया। बात भगवान शेषनाग तक पहुंची।
उन्होने नदी में तीन बार बेहद जोरदार ढंग से फुंकार मारी जिससे पूरी नदी खौलने लगी और उसके तल में पड़ी तमाम वस्तुएं सतह पर आ गईं। अंतत: माता पार्वती को उनकी खोई हुई मणि वापस मिल गई। बावजूद इसके नदी का एक हिस्सा आजतक खौल रहा है। यही कारण है कि इस स्थान को मणिकर्ण के नाम से जाना जाता है
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