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30 अक्तूबर 2011

पाप और दुर्गति की जड़ हैं ये 5 बातें..!

धर्मशास्त्रों की बातों पर गौर करें तो मोटे तौर पर कर्मों के दो परिणाम बताए गए हैं - पाप और पुण्य। जहां पाप सुखों से वंचित कर दु:ख का कारण बनते हैं, वहीं पुण्य, पापों को कम या मुक्त करने वाले माने गए हैं।

अक्सर देखा जाता है कि इंसान पाप कर्मों से तो जल्द जुड़ता है, वहीं सद्कर्मों और पुण्य कर्मों को लेकर अधिक सोच-विचार करता और वक्त लेता है। शास्त्रों में ऐसी प्रवृत्ति के पीछे 5 खास बातें बताई गई हैं, जिनके चलते सांसारिक जीवन में हर कोई जाने-अनजाने पाप कर बैठता है। इसलिए पापों से बचने के लिए इन बातों को सामने रख कर्म, विचारों और व्यवहार पर हमेशा ध्यान व मंथन जरूरी बताया गया है। जानते हैं ये 5 बातें -

लिखा गया है कि -

अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशा: क्लेशा:।।

संदेश है कि इन पांच कलह के वश में होने से पाप होते हैं। ये पांच क्लेश हैं-

अविद्या - अज्ञान का रूप है। सरल शब्दों में समझें तो हर स्थिति और विषय को लेकर सही समझ का अभाव। जिससे बुरे कर्म या सोच में भी सुख और अच्छा लगता है, जिसके नतीजे पाप के रूप में सामने आते हैं।

अस्मिता - मैं या अहं भाव। जिसे मन, मस्तिष्क व विचारों को जकडऩे वाला माना गया है। रावण, हिरण्यकशिपु या कंस भी इस दोष के कारण पाप कर्म में लिप्त होकर दुर्गति को प्राप्त हुए।

राग - आसक्ति का ही एक नाम, जो अच्छे-बुरे की समझ से दूर कर इंद्रिय असंयम का कारण बन पाप करवाती है।

द्वेष - मनचाहा न होने पर दु:खी और क्रोधित होने का भाव, जिससे कर्म, विचार और व्यवहार में दोष पैदा होता है।

अभिनिवेश - मौत का भय। हर इंसान यह जानते हुए भी कि मृत्यु अटल है, इससे बचने के लिए किसी न किसी रूप में तन, मन या धन का दुरुपयोग कर पाप कर्म करता है।

अगर आपकी धर्म और उपासना से जुड़ी कोई जिज्ञासा हो या कोई जानकारी चाहते हैं तो इस आर्टिकल पर टिप्पणी के साथ नीचे कमेंट बाक्स के जरिए हमें भेजें।

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