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29 अक्तूबर 2011

निभाई जाएगी 262 वर्ष पुरानी परंपरा, लाठियां भांजकर करेंगे कंस का वध


शाजापुर/भोपाल। शहर में कंस वधोत्सव की 262 वर्ष पुरानी परंपरा 5 नवंबर को निभाई जाएगी। कंस के पुतले का दिवाली के बाद आने वाली दशमी की रात गवली समाजजनों द्वारा लाठियों से भांजकर वध किया जाएगा। देश में मथुरा के बाद शाजापुर में मनने वाले कंस वधोत्सव को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं। वधोत्सव की रात श्रीकृष्ण और कंस के बीच जमकर वाकयुद्ध भी होगा।

आयोजन में प्रदेशभर से लोग आते हैं। कंस वधोत्सव समिति अध्यक्ष पं. सुरेंद्र मेहता, संयोजक तुलसीराम भावसार, चल समारोह प्रमुख पं. संतोष जोशी, बंटी कसेरा व संचालक रामचंद्र भावसार हैं।गोवर्धननाथ मंदिर के मुखिया और समिति अध्यक्ष पं. मेहता ने बताया 5 नवंबर को आजाद चौक व कंस चौराहे (सोमवारिया बाजार) में श्रीकृष्ण व कंस की सेना के बीच वाकयुद्ध होगा। चल समारोह रात 8 बजे पुराना अस्पताल स्थित बालवीर हनुमान मंदिर से शुरू होगा।

इसमें श्रीकृष्ण व कंस की सेना शामिल होगी जो वजीरपुरा, धानमंडी, किलारोड होता हुआ आजाद चौक पहुंचेगा। जहां करीब दो घंटे तक जमकर वाकयुद्ध होगा। इसके बाद चल समारोह पुन: शुरू होगा और नईसड़क, नाग-नागिन रोड, सोमवारिया बाजार होता हुआ कंस चौराहा आएगा। यहां फिर वाकयुद्ध होने के बाद रात 12 बजे कंस के पुतले का वध होगा। पुतले को घसीटते हुए घुमाया जाएगा।

अंगूठा लगाकर गिराएंगे

रात 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण की वेशभूषा में सजा कलाकार कंस के पुतले का पूजन करेंगे। फिर उसे अंगूठा लगाकर मंच से सड़क पर गिराएंगे। इसके बाद गवली समाज के लोग लाठियों से पुतले पर प्रहार करेंगे व घसीटते हुए पुतले को ले जाएंगे।

वैष्णव मंदिर से हुई थी शुरुआत

समिति अध्यक्ष पं. मेहता ने बताया शहर में इस परंपरा की शुरुआत पु ष्टिमार्गीय श्री गोवर्धननाथ मंदिर हवेली के मुखिया स्व. मोतीलाल मेहता गेबीजी ने करीब 262 साल पहले शुरू की थी। पहले यह आयोजन मंदिर परिसर में ही मनता था लेकिन बाद में इस आयोजन ने सार्वजनिक रूप ले लिया और सोमवारिया बाजार के कंस चौराहे पर आयोजन होने लगा।

मौजूदा समय में सबके सहयोग से आयोजन होता है। मथुरा के बाद आयोजन शाजापुर में ही होता है। हालांकि उज्जैन में भी इस तरह की परंपरा शुरू की गई है।

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