
लोगों का दावा था कि मौत के बाद भी उसे चलते हुए देखा था। उसके दांत लंबे-नुकीले हो गए थे और आंखों की चमक बढ़ गई थी। इस मामले ने काफी तूल पकड़ा था और ऑस्ट्रिया सरकार ने भी सेना के दो डॉक्टर्स ग्लेसर और फल्किंगर को तहकीकात के लिए भेजा था। उन्होंने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात पर सहमति जताई थी। इस तरह अरनॉल्ड की कहानी एक रहस्य बन गई।
स्थानीय रिकॉर्ड से पता चलता है कि वह तुर्की के कब्जे वाले सर्बिया से यहां आया था। वह बताता था कि उसे गोसोवा में एक वैंपायर ने शिकार बनाया। वह इसका इलाज कर रहा था। 1725 में वह गिरा था और उसकी गर्दन की हड्डी टूट गई थी। इसके बाद ये समस्या फिर से आ गई थी। कुछ समय बाद 1726 में उसकी मौत हो गई थी।
अरनॉल्ड की मौत के बाद एक महीने के भीतर गांव में चार लोगों की रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई। लोगों को लगा ये वैंपायर अरनॉल्ड की वजह से हो रहा है। उसकी कब्र खोदी गई तो पता चला शरीर सड़ा नहीं था, उसकी आंखों में पानी था और चेहरे पर खून लगा था। लोगों को लगा वह वाकई वैंपायर है।
उन्होंने एक चाकू उसके दिल के आर-पार किया और शरीर जला दिया। पांच साल बाद 1931 में फिर गांव में उसी तरह मौतें होने लगीं। इसके बाद पहले डॉक्टर ग्लेसर और फिर डॉक्टर फल्किंगर को जांच के लिए भेजा गया। ग्लेसर ने रिपोर्ट में अरनॉल्ड के वैंपायर होने की बात स्वीकारी।
फल्किंगर ने अरनॉल्ड और मारे गए दूसरे लोगों की कब्रें खोदकर देखीं। सभी के शरीर सही-सलामत थे। उन्होंने इन कथित वैंपायर्स के सिर धड़ से अलग किए और दोनों जला दिए। राख मोरावा नदी में बहा दी गई थी। 26 जनवरी 1732 को बेलग्रेड में बनी इस रिपोर्ट में फल्किंगर के अलावा 5 अधिकारियों के साइन हैं।
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