वे दोनों एक ही राजनीतिक परिवार से हैं, लेकिन उनके स्वर भिन्न हैं। संसद में दो अलग-अलग दिन राहुल गांधी और वरुण गांधी ने भाषण दिए। इनमें न केवल शैली का अंतर था, बल्कि श्रोता तक अपनी बात पहुंचाने की ताकत भी जुदा थी।
दोनों की पार्टी लाइन एक-दूसरे के विपरीत है। एक कांग्रेस से है, जबकि दूसरा भाजपा से है। राहुल ने सख्ती से और दहाड़ते हुए अपनी बात कही। वरुण ने अपेक्षाकृत काफी नरम लहजे में अपनी बात रखी, जिसे एक याचक की भाषा भी कह सकते हैं।
यह थे प्रमुख अंतर
1. राहुल पहले से तैयार सामग्री पढ़ रहे थे, जिसकी आधी भाषा नौकरशाहों की नजर आ रही थी और आधी भाषा गोलमोल थी। अपने छोटे भाई की तुलना में उनकी भाषा ज्यादा यांत्रिक नजर आ रही थी।
2. राहुल ने संदेह जताया कि एक विधेयक भ्रष्टाचार मुफ्त समाज कैसे दे सकता है। वरुण को एक भ्रष्टाचार रोधी कानून में उम्मीद की किरण नजर आई।
3. राहुल को उम्मीद है कि युवाओं को सशक्त कर राजनीतिक तंत्र को खोला जाना चाहिए। संसद और राजनीति में युवाओं की जरूरत है। दूसरी ओर वरुण ने जोर दिया कि युवा बदलाव के सक्रिय वाहक बन सकते हैं। उनकी आवाज को दबाया नहीं जाना चाहिए।
4. साधारण मान्यता यह है कि राहुल के मुकाबले जनता से जुड़ने में वरुण को महारत हासिल है। वे विपक्ष की बेंच से कड़ी भाषा बोलते हैं, जो लोग सुनना चाहते हैं।
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