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09 सितंबर 2011

मिलना चाहिए राइट टू रीकॉल का अधिकार

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नेटवर्क. देश के करोड़ों लोगों के अन्ना हजारे के साथ जुड़ जाने पर सरकार किसी तरह से जनलोकपाल बिल पर चर्चा कराने को तैयार हुई। सरकार को लगा मुसीबत खत्म हो गई।

मगर, अनशन के अंतिम दिन अन्ना ने कहा कि जो राजनेता जनता की अपेक्षा पर खरे नहीं उतरते हैं, उन्हें बीच में ही हटाने के लिए देशवासियों को ‘राइट टू रीकॉल’ यानी चुने प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार मिलना चाहिए। इससे सरकार की पेशानी पर एक बार फिर से बल पड़ गए हैं। हजारे ने यह भी कहा कि चुनावों की बैलेट शीट में दिए गए नेता में से किसी एक को चुनने के लिए मतदाता बाध्य होता है। यह सही नहीं है।

बैलेट मशीन में एक और विकल्प ‘राइट टू रिजेक्ट’ यानी खारिज करने का अधिकार होना चाहिए। यदि मतदाता को चुनाव में खड़ा कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं हो तो वह इस विकल्प को चुन सकता है। यदि राइट टू रिजेक्ट का प्रतिशत अधिक होगा तो चुनाव को खारिज कर दिया जाएगा।

क्यों मिलना चाहिए अधिकार

वापस बुलाने का अधिकार जनता को मिलने से चुने गए प्रत्याशी सही से काम करेंगे। अभी एक बार चुन लिए जाने के बाद वे पांच वर्षो तक अपने पद पर रहते हैं। जनता के प्रति जवाबदेही नहीं होने और कुर्सी जाने का खतरा नहीं होने के कारण वे पांच वर्षो तक मनमानी कर सकते हैं। पूरा देश अन्ना के साथ खड़े होकर जनलोकपाल बिल लाने की मांग कर रहा था। अन्ना भूख हड़ताल कर रहे थे और सरकार को उनकी मांगों को मानने में १२ दिन लगे तो वह सिर्फ इसलिए, क्योंकि देश में राइट टू रीकॉल नहीं है। नेताओं को लगा कि अभी तो चुनाव में दो-ढाई साल हैं और इस दौरान सरकार नहीं गिर सकती है। यदि राइट टू रीकॉल होता तो शायद इस अनशन की जरूरत ही नहीं होती।

स्थानीय निकायों में है ये व्यवस्था

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित कुछ राज्यों में पंचायती राज व्यवस्था में चुने गए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार है। मगर, यह एमपी और एमएलए पर लागू नहीं होता है। छत्तीसगढ़ में सीधे लोकतंत्र को स्थापित करने की दिशा में तीन शहरी निकायों के चुनावों में राइट टू रीकॉल करने का अधिकार शामिल किया गया। इस राज्य में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए जनमत संग्रह और राइट टू रीकॉल महत्वपूर्ण घटक है। रीकॉल इलेक्शन ऐसी प्रक्रिया है, जिसके जरिए किसी पदाधिकारी को सत्ता से बाहर किया जा सकता है। अलग-अलग देशों या राज्यों में राइट टू रीकॉल के कारण और प्रक्रिया अलग-अलग हो सकती है।

चुनाव आयोग भी समर्थन में

चुनाव आयोग भी मानता है कि इलेक्शन रीफॉर्म होने चाहिए, लेकिन इस दिशा में अंतिम रूप से कदम सरकार को ही उठाने होंगे। भारत में होने वाले चुनावों में राइट टू रीकॉल और राइट टू रिजेक्ट अधिकारों को शामिल करने के लिए लोक प्रतिनिधित्व कानून में व्यापक बदलाव करने होंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी भी मानते हैं कि चुनाव पत्र में किसी भी उम्मीदवार को न चुनने का विकल्प भी होना चाहिए। यूपीए सरकार भी चुनाव सुधारों की वकालत करती है, लेकिन इन दोनों मामलों में वह कोई साफ जवाब नहीं देती है।


वसूली भी होना चाहिए


अन्ना के यह दो सुझाव बसपा के विधायक आनंद सेन (शशि हत्याकांड में लिप्त), पुरुषोत्तम द्विवेदी (बांदा रेप केस में लिप्त),शेखर तिवारी (इंजीनियर मनोज गुप्ता हत्याकांड),सांसद ए. राजा (2जी स्पेक्ट्रम घोटाला), दयानिधि मारन (2जी स्पेक्ट्रम घोटाला), लालूप्रसाद यादव (चारा घोटाला), बीएस येदियुरप्पा (अवैध खनन घोटाला) जैसे दागी नेताओं को सबक सिखाने के लिए बेहतर साबित हो सकते हैं।


अन्ना ने रामलीला मैदान से एक और अहम बात कही थी, वह है वसूली की। अब तक जितने भी घोटाले हुए, उनमें वसूली नहीं हुई। अन्ना का कहना है कि देश में ऐसा नियम लाना चाहिए, जिसके अंतर्गत घोटाला करने वाले अधिकारियों या नेताओं से उतने ही धन की वसूली की जा सके,जितने का उसने गबन किया है। इसके साथ ही ये अधिकार उन सांसदों और विधायकों को सबक सिखाने के लिए मुफीद होंगे जो चुने जाने के बाद नियमित रूप से सदन में नहीं जाते या जो सदन में जाते तो हैं, लेकिन एक भी प्रश्न नहीं पूछते। जनता उन सांसद-विधायकों को सबक सिखा सकती है, जो खुद को सबसे ऊपर समझते हैं और मनमानी करते रहते हैं।


अमेरिका में शुरू हुई प्रथा

चुने गए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने की प्रथा अमेरिका में शुरू हुई। सबसे पहले लॉस एंजिल्स म्युनिसिपालिटी के चुनावों में १९क्३ में इसका प्रयोग किया गया था। मिशिगन और ओरेगॉन दो पहले ऐसे राज्य थे, जिन्होंने १९क्८ में रीकॉल प्रोसिजर को राज्य के अधिकारियों के लिए लागू किया था।


मिन्निसोटा सबसे हाल का (1996) उदाहरण है। राइट टू रीकॉल स्टेट ऑफिशियल्स की जगह स्थानीय निकायों पर अधिक सफल हुआ है। अमेरिकी इतिहास में अब तक दो राज्यपालों को सफलतापूर्वक रीकॉल किया जा चुका है। उत्तरी डाकोटा के लिन जे फ्रेजर इसके पहले शिकार बने थे। उन्हें 1921 में सरकारी उद्योगों पर हुए विवाद के बाद रीकॉल किया गया था। दूसरे कैलिफोर्निया के गवर्नर ग्रे डेविस थे। उन्हें 2003 में राज्य के बजट का कुप्रबंधन करने पर वापस बुला लिया गया था।

2003 में किए गए 22 रीकॉल

कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में रीप्रेजेंटेटिव रीकॉल लॉ यानी चुने गए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का कानून 1995 में अधिनियमित किया गया। कोलंबिया प्रांत के मतदाता सरकार के प्रमुख प्रधानमंत्री सहित पदासीन किसी प्रतिनिधि को उसके पद से हटाने के लिए याचिका ला सकते हैं। यदि पर्याप्त पंजीकृत मतदाता याचिका पर हस्ताक्षर कर देते हैं तो विधायिका के अध्यक्ष सदन के सामने सदस्य को रीकॉल करने और उसकी जगह नए सदस्य को चुनने के लिए जल्द से जल्द उपचुनाव करने की घोषणा करते हैं। जनवरी 2003 में रिकॉर्ड 22 रीकॉल किए गए थे, हालांकि तकनीकी रूप से किसी को भी रीकॉल नहीं किया गया।

राष्ट्रपति को हटना पड़ा

वेनेजुएला के 1999 में बने संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत चुने गए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार दिया गया है। इस अधिकार का प्रयोग वेनेजुएला में 2004 में रीकॉल जनमत संग्रह के दौरान किया गया था। इसके बाद राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज को राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ा था।

रीकॉल करने के कारण

रीकॉल प्रक्रिया को लाने के कारण अलग-अलग देशों में अलग-अलग हो सकते हैं। सिर्फ अमेरिका के सात राज्यों में विशेष आधारों पर ऐसा किया जा सकता है। इन कारणों में प्रतिनिधि के अक्षम होने, शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ न होने, कार्यो को नजरअंदाज करने,भ्रष्टाचार,कार्यालय में र्दुव्‍यवहार या ली गई शपथ का उल्लंघन करना शामिल है। पदाधिकारियों को यह तय करना होता है कि वे जो भी काम करने जा रहे हैं, उसमें से जनता के लिए क्या सही है या जनता को उस कार्य से क्या लाभ मिलेगा। इससे दीर्घकालिक योजनाएं बनाते समय अल्पकालिक विचारों को भी उन्हें ध्यान में रखना होता है। जाहिर है आम लोगों के हित की सरकारी नीतियां बनेंगी। बड़े वित्तीय संस्थान इस कमी का फायदा उठाकर अपने पक्ष के लिए नीति बनाने का दबाव बना सकते हैं। ऐसे में यह लोकतांत्रिक टूल स्थाई सरकार के लिए खतरा बन सकता है।

ऐसे होती है यह प्रक्रिया

जब कभी मतदाता निर्वाचित प्रतिनिधि के प्रदर्शन से असंतुष्ट हों, वे इसका प्रयोग कर सकते हैं। जो लोग किसी अधिकारी को उसके पद से हटाना चाहते हैं उन्हें एक याचिका पर हस्ताक्षर करने होंगे। यदि पिछले चुनावों में वोट देने वाले मतदाताओं का अधिक प्रतिशत उसे हटाने के लिए हस्ताक्षर कर देता है तो उसे पद से हटना होगा। हस्ताक्षर की जरूरतें एक फॉमरूले पर आधारित होती हैं, जो हर राज्य में अलग-अलग होती है। ये योग्य मतदाताओं की संख्या या अन्य घटकों के आधार पर बना होता है। इसके बाद नए उम्मीदवार का चुनाव होता है।

इस तरह से निर्वाचित व्यक्ति के लिए यह एक मौलिक कर्तव्यों की रूपरेखा बनाता है, जिसमें वह मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होता है। हालांकि, यह अन्य प्रावधानों से अलग होता है, महाभियोग की प्रक्रिया। रीकॉल एक राजनीतिक प्रक्रिया है,जबकि महाभियोग एक कानूनी प्रक्रिया होती है। रीकॉल प्रक्रिया को शुरू करने के लिए जनमत संग्रह भी किया जा सकता है, जो प्रभाव में कानूनी तौर पर बाध्यकारी होगा।

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