
लाभ और हानि, ये निजी जीवन का हिस्सा भी है और व्यवसायिक जीवन का अंग भी। कर्म का परिणाम नफा-नुकसान हो सकता है। काम धंधे में भाग्यवाद की दीमक हमें खोखला कर सकती है। कभी भी, किसी भी परिस्थितियों में कर्म का दामन ना छोड़ें।
अगर कर्म का हाथ छूट जाए तो सारा लाभ, हानि में बदल सकता है। जब तक कि हमारा कोई काम पूरा ना हो जाए, परिणाम हाथ में ना आ जाए, प्रयास नहीं छोडऩे चाहिए।
कई बार ऐसा होता है कि परिणाम सामने नजर आ रहा होता है, हम अपनी तरह आ रही सफलता को देखकर प्रयास रोक देते हैं। नतीजा कई बार सफलता मिलते-मिलते रह जाती है। कई बार करारी हार का सामना करना पड़ता है।
दूर से सफलता का अनुमान लगाना भाग्यवाद को बढ़ावा देता है। हम पहले ही सोच लेते हैं कि यह फायदा तो हमारी झोली में ही आया समझो। अनुमानित सफलता को हम तय मान लेते हैं।
महाभारत का युद्ध चल रहा था, कौरवों के योद्धाओं ने मिलकर अर्जुन के बेटे अभिमन्यु की हत्याकर दी। अभिमन्यु की रक्षा के लिए उसके पीछे गए पांडवों को जयद्रथ ने रोक लिया था। अर्जुन को जब पता चला, उसने अगले दिन सूर्यास्त होने के पहले ही जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा कर ली। अगला पूरा दिन कौरव सेना ने जयद्रथ को छुपाए रखा। दिन ढलता जा रहा था। पांडवों की बेचैनी भी बढ़ रही थी।
तभी भगवान कृष्ण ने अपनी योग विद्या से सूर्य को बादलों से ढंक दिया। ऐसा लगने लगा रात हो गई। अर्जुन ने अपने लिए चिता सजा ली। इस खुशी में जयद्रथ भी नाचता हुआ अर्जुन के सामने आ पहुंचा। उसे अपने भाग्य पर भरोसा था। उसने यह अनुमान लगा लिया था कि अब अर्जुन आत्मदाह कर लेगा। लेकिन तभी कृष्ण ने अपनी माया हटाई। सूर्य को ढंके बादल छंट गए, उजाला हो गया। अर्जुन ने जयद्रथ को मार दिया।
परिणाम आने के पहले ली जयद्रथ ने अपने प्रयास छोड़ दिए। इंतजार ही नहीं किया। नतीजा जो युद्ध कौरवों के पक्ष में जाता दिख रहा था। वह हार में बदल गया।
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