मुर्दों के
इस देश में
रहने वाले हम लोग
आखिर
किस सुबह
किस आज़ादी की
बात कर रहे हैं
यह सत्ता के
भूखे भेडिये हैं
देख लो
यह ज़िंदा लोगों की लाशों से
बलात्कार ..अत्याचार कर रहे हैं
इन लाशों के मांस को
नोच नोच कर खा रहे हैं
हाँ
अँगरेज़ चले गए
ओलादें छोड़ गए
इसलियें यह कहा रहे हैं
और गुर्रा रहे हैं
हो सके तो इन्हें रोक लो
ऐ मेरे वतन को लोगों
तुम जो बने हो ज़िंदा लाश
जरा उठो
सत्ता के इन भूखे भेडियों का टेटुआ दबाकर
इनके जबड़ों से
चमकता सूरज
मेरे देश को छुडा कर
आज़ाद करा लो
ताके तुम्हे हमें एक बार फिर मिले
सुबह सवेरा एक नये आज़ादी का बसेरा ....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
03 सितंबर 2011
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बहुत तीखे तेवर हैं ...
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