लोगों को अक्सर यह कहते सुना होगा कि जब तक मैं बदला नहीं ले लेता मेरे कलेजे को ठंडक नहीं पहुंचेगी। मेरा जितना अपमान और नुकसान हुआ है, जब तक सामने वाले का उतना ही बिगाड़ नहीं कर लूं मुझे चैन से नींद नहीं आएगी। ये ऐसी बातें हैं, जिनसे पता चलता है कि इंसान बदले की आग में खुद ही जल रहा है। कभी कभी बदले की भावना में आदमी इतना अंधा हो जाता है कि उसे ये ध्यान भी नहीं होता कि ऐसी भावना कहीं न कहीं उसे ही नुकसान पहुंचाएगी क्योंकि किसी के लिए प्रतिशोध की भावना कभी अच्छा फल नहीं देती। आइये चलते हैं ऐसी ही कथा की ओर जो बदले की भावना के नतीजों से रूबरू करवाती है......
एक आदमी ने बहुत बड़े भोज का आयोजन किया परोसने के क्रम में जब पापड़ रखने की बारी आई तो आखिरी पंक्ति के एक व्यक्ति के पास पहुंचते पहुंचते पापड़ के टुकड़े हो गए उस व्यक्ति को लगा कि यह सब जानबूझ करउसका अपमान करने के लिए किया गया है । इसी बात पर उसने बदला लेने की ठान ली।
कुछ दिनों बाद उस व्यक्ति ने भी एक बहुत बड़े भोज का आयोजन किया और उस आदमी को भी बुलाया जिसके यहां वह भोजन करने गया था। पापड़ परोसते समय उसने जानबूझकर पापड़ के टुकड़े कर उस आदमी की थाली में रख दिए लेकिन उस आदमी ने इस बात पर अपनी कोई प्रतिक्रि या नहीं दी। तब उसने उससे पूछा कि मैने तुम्हें टूआ हुआ पापड़ दिया है तुम्हें इस बात का बुरा नहीं लगा तब वह बोला बिल्कुल नहीं वैसे भी पापड़ को तो तोड़ कर ही खाया जाता है आपने उसे पहले से ही तोड़कर मेरा काम आसान कर दिया है। उस व्यक्ति की बात सुनकर उस आदमी को अपने किये पर बहुत पछतावा हुआ।
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