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07 सितंबर 2011

सुलझते मामले तो मिलती ‘लीड’ और रुकते धमाके


नई दिल्ली. दिल्ली पुलिस, आईबी और राष्ट्रीय जांच एजेंसी अगर समय रहते विभिन्न आतंकी हमलों के तार सुलझाने में सफल रहती तो हाईकोर्ट के बाहर हुए धमाके को रोका जा सकता था। ये एजेंसियां अगर संजीदगी से पिछले दो साल के दौरान हुए छह मामले में किसी तरह की लीड हासिल करती तो अगले धमाकों को लेकर उसके हाथ बड़ी सूचनाएं लग सकती थी। जिससे इस धमाके को रोका जा सकता था।

पुणे जर्मन बेकरी बम धमाका फरवरी 2010-17 की मौत, जामा मस्जिद विस्फोट सितंबर 2010, वाराणसी धमाका दिसंबर 2010, चिन्ना स्वामी स्टेडियम धमाका अप्रैल 2010, दिल्ली हाईकोर्ट धमाका मई 2011, और मुंबई बम धमाका 13/7 ऐसे मामले हैं जिनमें पुलिस-जांच एजेंसियां साजिश की कड़ी और विभिन्न साक्ष्यों के तार जोडऩे में विफल रही। पुणे बम धमाके में प्रारंभिक स्तर पर आईएम का नाम लेने के बाद से जांच एजेंसियां अंधेरे में हैं। जामा मस्जिद बम धमाके में भी पुलिस के हाथ में कुछ नहीं है। उसे यह तक मालूम नहीं है कि इसमें किसका हाथ है। वाराणसी धमाके में भी आईएम (इंडियन मुजाहिदीन) का नाम लिया गया। लेकिन इस मामले में इससे आगे एक कदम भी जांच नहीं बढ़ पाई।

दिल्ली हाईकोर्ट धमाके में भी पुलिस किसी किनारे तक नहीं पहुंच पाई है। चिन्नास्वामी स्टेडियम धमाके में जांच एजेंसियों ने एक सलमान उर्फ छोटू को संदिग्ध करार दिया था। लेकिन इस मामले में भी उसे या फिर आईएम को कठघरे में खड़ा करने का कोई साक्ष्य एजेंसियों के हाथ नहीं लगा। 13/7 मुंबई धमाके के मामले भी पुलिस खाली हाथ है। रोचक यह है कि पुलिस-जांच एजेंसियों की यह हालत उस समय है जब केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम लगातार सूचना एजेंसियों के आपसी तालमेल के साथ ही उनके बीच बेहतर संवाद और कार्यप्रणाली में सुधार का दावा कर रहे हैं।

आतंकवाद को पैसा मुहैया कराने वालों की धरपकड़ की कवायद

नई दिल्ली. केंद्र ने आतंकी कार्रवाई के लिए वित्त उपलब्ध कराने वाले संगठनों और लोगों को सुरक्षा एजेंसियों के राडार पर लाने का जिम्मा अब एक और एजेंसी को दिया है। सूत्रों ने बताया कि वित्त मंत्रालय के अधीन गठित होने वाला आपराधिक जांच निदेशालय (डीसीआई) के कार्यों में सभी गैर-कानूनी फंड के स्त्रोत पर निगाह रखना है। इसमें आतंकवादी व नक्सल घटनाओं को अंजाम देने से संबंधित फंड पर निगाह रखना भी शामिल है। यह दायित्व क

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