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14 सितंबर 2011

अंग्रेजों से लोहा लिया, जीवन की सांझ में अपनों से हार

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कोटा.देश की आजादी के संघर्ष में अंग्रेजों से लोहा लेने में पीछे नहीं हटे, लेकिन अब ध्वस्त होते सामाजिक-पारिवारिक मूल्यों के चलते उम्र के अंतिम पड़ाव में सांस-सांस का हिसाब रखना पड़ रहा है।

जिंदगी में कभी हार नहीं मानने वाले स्वतंत्रता सेनानी मोहन लाल गुप्ता भी उन बुजुर्गो में शामिल हैं, जिन्हें अपनों से ही परास्त-हताश होकर वृद्धाश्रम की शरण लेनी पड़ी।

पिछले डेढ़ साल से कोटा-झालावाड़ हाईवे के पास स्थित वृद्धाश्रम (श्रद्धा भवन) में अपनी धर्मपत्नी के साथ रह रहे तीन बेटों के पिता 87 वर्षीय मोहनलाल गुप्ता के घर में किसी भी चीज की कमी नहीं है।

सुकून, शांति और स्वाभिमान को बचाने के लिए सब कुछ छोड़ना पड़ा। कोटा निवासी गुप्ता के तीन बेटों के अपने अलग-अलग मकान हैं लेकिन रहने को नहीं मिला महज एक कमरा, जिसमें काट सकें अपना बुढ़ापा शांति और सुकून से।

पहले तो अपनी पत्नी के साथ अग्रसेन बाजार में किराए का कमरा लेकर रहने लगे और फिर उन्हें वृद्धाश्रम का आसरा लेना पड़ा । श्रद्धा भवन में वे उन संपन्न परिवारों के बुजुर्गो के साथ रह रहे हैं, जो 1500 रुपए प्रतिमाह भुगतान करते हैं।

इनमें आर्थिक रूप से सक्षम परिवारों के वे बुजुर्ग भी शामिल हैं, जिन्हें न्यायिक लड़ाई लड़कर अपने बेटों से गुजारा-भत्ते के रूप में हर माह राशि वसूलनी पड़ रही है।

चूंकि गुप्ता अपनी पत्नी के साथ रहते हैं, इसलिए उन्हें ढाई हजार रुपए प्रतिमाह देना पड़ता है। वे ताम्र पत्रधारी स्वतंत्रता सेनानी हैं और पेंशन के रूप में सरकार से 16 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं।

इस राशि में से वे वृद्धाश्रम पर भी खर्च करते रहते हैं ताकि उनके जैसे घर से ठुकराए बुजुर्गो को मदद मिल सके।

अकेले निकल पड़े थे तिरंगा लेकर

भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में बड़ा आंदोलन खड़ा करने वाले अन्ना हजारे जब पहली बार दिल्ली में अनशन पर बैठे थे तो उनके समर्थन में स्वतंत्रता सेनानी मोहनलाल गुप्ता अपने हाथ में तिरंगा लेकर अकेले ही जिला कलेक्ट्रेट पर धरना देने निकल पड़े थे। फिर कई लोग उनके साथ जुट गए थे।

आजादी आंदोलन के दौरान वर्ष 1942 में जब कोटा में रामपुरा कोतवाली पर जनता ने कब्जा कर लिया था, तो उस आंदोलन की अगुवाई करने वालों में मोहनलाल गुप्ता भी शामिल थे।

नौकरी में लड़ते रहे और अब परिवार से

कार्यालय अधीक्षक रह चुके 90 वर्षीय पीएम माथुर को आला अफसरों की चापलूसी नहीं करने के कारण लगातार तबादले की त्रासदी झेलना पड़ा। लेट ज्वाइनिंग के आरोप में सस्पेंड कर दिए गए और बाद में बर्खास्तगी का दंश झेलना पड़ा।

आर्थिक अभाव से जूझते हुए अपने बेटों को पढ़ा लिखाकर काबिल बनाया। माथुर के दो बेटे सरकारी नौकरी में हैं और एक वकील है। बेटों से गुजारा-भत्ता लेने के लिए न्यायालय में केस दायर करना पड़ा। अदालत के आदेश से हर माह बेटों को गुजारा-भत्ते की राशि देना पड़ा रहा है।

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