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23 सितंबर 2011

पीएमओ ने दी थी गरीबी के आंकड़े को हरी झंडी, योजना आयोग में बगावत

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नई दिल्ली. गरीबी के आंकड़ों को लेकर योजना आयोग की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे पर विवाद थमता नज़र नहीं आ रहा है। आयोग के दो सदस्य अभिजीत सेन और मिहिर शाह बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में आयोग की तरफ से दायर हलफनामे के विरोध में खुलकर सामने आ गए। इस हलफनामे में योजना आयोग ने कहा था कि शहरी इलाकों में 32 रुपये और ग्रामीण इलाकों में 26 रुपये खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं माना जाएगा। यह बात भी सामने आ रही है कि योजना आयोग के इन आंकड़ों को प्रधानमंत्री कार्यालय से भी सहमति मिली थी। हालांकि अब आंकड़े में सुधार करने की बात भी कही जा रही है।

सेन और शाह ने मीडिया को जानकारी दी है कि योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के अहम सवालों के जवाब नहीं दिए। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की सूची में शामिल लाभार्थियों की संख्या सीमित क्यों है? योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के इस सवाल का कोई साफ सुथरा जवाब नहीं दिया है कि बीपीएल सूची में आने वाले लोगों को सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का लाभ लेने की सीमा क्यों तय की गई है। अभिजीत सेन के मुताबिक आयोग ने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया है। वहीं, शाह ने भी लाभार्थियों की सीमा तय किए जाने पर ऐतराज जताया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा बीपीएल लाभार्थियों के लिए कट ऑफ लगाए जाने की वजह पूछी थी। लाभार्थियों को बीपीएल कार्ड राज्य सरकारें जनगणना के आधार पर देती हैं। समाज के इस तबके के लिए कल्याणकारी योजनाओं में धन केंद्र मुहैया कराता है। लेकिन इसे योजना आयोग द्वारा तय कट ऑफ लाइन के आधार पर ही बीपीएल कार्ड धारकों को लाभ दिया जाता है।

ऐसे में अगर राज्य सरकार जनगणना के आधार पर तैयार बीपीएल सूची में आने वाले सभी लोगों को योजना का लाभ देना चाहे तो उसे सब्सिडी का भार खुद उठाना पड़ता है। योजना आयोग ने अपने हलफनामे में तेंडुलकर आयोग के ही आंकड़े दोहरा दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान सलाहकार खाद्य आयुक्त बिरज पटनायक का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूछे गए सवाल का ठोस जवाब न देकर योजना आयोग ने कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश की है। पटनायक के मुताबिक योजना आयोग ने दो अहम बिंदुओं पर कोई जवाब नहीं दिया है। पहला बिंदु है, गरीबी रेखा का महंगाई के आधार पर संशोधन और दूसरा बीपीएल तय करते समय कैप का इस्तेमाल न करना।
अभिजीत सेन का कहना है, 'यह बेहद अहम सवाल है। योजना आयोग बीपीएल सूची में भी सीमा निर्धारित करने के मुद्दे पर खुलकर सामने नहीं आया है। हमें इन सवालों के जवाब आज नहीं तो कल देने होंगे। अफसोस है कि समय से इन मुद्दों पर फैसला नहीं लिया जा सका ताकि कोर्ट को सूचित किया जा सके।' पटनायक के मुताबिक इस चूक के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय भी जिम्मेदार है क्योंकि वहां भी इस हलफनामे की जांच की गई थी। सूत्रों के मुताबिक योजना आयोग के सदस्यों के बीच हलफनामे को लेकर गंभीर मतभेद थे। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस पार्टी के वकीलों ने आयोग को अड़ने के लिए कहा था। वहीं, पीएमओ भी इसी रुख पर अड़ा रहा।

सेन के मुताबिक, 'तेंडुलकर से गरीबी की सीमा (कैप) निर्धारित करने के लिए नहीं कहा गया था। उनसे गरीबी के पहले के आंकड़ों की वर्तमान आंकड़ों से तुलना करके यह देखने को कहा गया था कि किसी तरह का सुधार आया है या नहीं। रिपोर्ट में शहरी इलाकों में गरीबी के आंकड़ों को तो पहले जैसा ही रखा गया और वस्तुओं के दाम में हुई बढ़ोतरी के आधार पर गांवों में गरीबी के आंकड़ों में बदलाव कर दिया।'

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